सुकरात यूनान के महान दार्शनिकों में से एक थे। उनका जन्म ईसा से 470 साल पहले हुआ था। वह एक मध्यम परिवार में जन्मे थे। इनके पिता सोफ्रोनिस्कस पेशे से एक मूर्तिकार थे। बचपन में सुकरात ने भी अपने पिता से मूर्तिकला सीखी थी। लेकिन जल्दी ही इनका मन मूर्तिकला से विरक्त हो गया। इन्होंने भी अपने समकालीन बच्चों की तरह मातृ भाषा , यूनानी कविता, गणित, ज्यामिति और खगोल विज्ञान की पढाई की थी। इन्होंने कुछ साल तक एक सैनिक के रूप में भी काम किया था। जल्दी ही सुकरात ने एक स्कूल खोल लिया और बच्चों को दर्शन आदि की शिक्षा दी।
एक बार एक व्यक्ति इनके पास आया और बोला, हमारा सबसे बड़ा मित्र कौन है? सुकरात ने तपाक से उत्तर दिया-मन। इस पर उस व्यक्ति ने अगला सवाल किया-हमारा शत्रु कौन है? इस बार भी सुकरात ने जवाब दिया-मन हमारा सबसे बड़ा शत्रु है। यह सुनकर वह व्यक्ति अचंभित हो गया, उसने कहा-मैं आपकी बात अच्छी तरह से समझ नहीं पाया। जरा विस्तार से समझाएं। तब सुकरात बोले, मन हमसे अच्छे-अच्छे कार्य कराता है। वह लोगों की भलाई करने की प्रेरणा देता है।
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इससे बड़ा मित्र हमारा दूसरा कोई हो ही नहीं सकता है। लेकिन यही मन अगर गलत कार्यों को करने के लिए प्रेरित करे, तो इससे बढ़कर कोई दूसरा शत्रु हो भी नहीं सकता है। उस आदमी ने अगला सवाल किया-जब मित्र और शत्रु दोनों एक साथ हों, तो किसका प्रभाव हमारे ऊपर सबसे ज्यादा होगा? तब सुकरात ने कहा कि यह तो हमारे ऊपर निर्भर है कि हम किसको अपने ऊपर हावी होने देते हैं। यह सुनकर वह व्यक्ति संतुष्ट होकर चला गया।
-अशोक मिश्र
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