अपने देश में इन दिनों चुनावी बयार बह रही है। बेरोजगारी एक अहम मुद्दा है। भारत सरकार ने पश्चिमी देशों में युवाओं के लिए रोजगार के अवसर तलाशने शुरू कर दिए हैं। अभी कुछ ही दिन पहले हरियाणा सहित कई राज्यों से हजारों युवाओं को इजरायल भेजा गया है। वहां पर दस हजार युवाओं की जरूरत है। हालांकि वहां युद्ध चल रहा है, इसके बावजूद हमारे युवा जोखिम उठाकर वहां जाने को तैयार हैं, तो इससे भारत में बेरोजगारी की गंभीरता को समझा जा सकता है। हमारे देश के युवाओं की मनोवृत्ति यह है कि वे जब भी देश से बाहर रोजगार की संभावनाओं को देखते हैं, तो उन्हें पश्चिम के देश ही दिखाई देते हैं। पूर्व में भी कुछ देश ऐसे हैं जिनके यहां भारतीयों के लिए रोजगार की बेहतरीन संभावनाएं मौजूद हैं। जापान हमारे देश के युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराने का सबसे बेहतर जरिया हो सकता है।
जापान इन दिनों कामकाजी उम्र वाले युवाओं की कमी के संकट से जूझ रहा है। जब हमारे युवा युद्धरत इजराइल जैसे देश में रोजगार की तलाश में जा सकते हैं, तो जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देश में क्यों नहीं जा सकते हैं। जापान और भारत के बीच वैसे भी सदियों से सांस्कृतिक और व्यापारिक रिश्ता रहा है। बस, हमारे देश को उन्हें यह विश्वास दिलाना होगा कि वे उनकी सांस्कृतिक और सामाजिक ताने-बाने को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे। जापान में वर्ष 1990 से लेकर पिछले साल तक कामकाजी उम्र के लोगों की संख्या में भारी कमी आई है। कामकाजी उम्र के लोगों की कमी को पूरा करने के लिए जापान ने न केवल रिटायरमेंट की अवधि का बढ़ाया है, बल्कि रिटायरमेंट के बाद भी काम दिया है। महिलाओं को भी ज्यादा से ज्यादा रोजगार और नौकरियों के अवसर उपलब्ध कराए गए हैं।
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उत्पादकता को बरकरार रखने के लिए ओवरटाइम भी दिया जा रहा है। इसके बावजूद जापान में वर्कफोर्स घट रहा है। ऐसी स्थिति में भारत जैसे युवा शक्ति वाले देश को मौके का फायदा उठाने से नहीं चूकना चाहिए। जापान में हाइली स्किल्ड जैसे इंजीनियरों और तकनीशियनों को मांग बहुत है। यदि जापान की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार हमारे युवाओं को प्रशिक्षित करे, तो देश की बेरोजगारी को कुछ हद तक कम किया जा सकता है।
ऐसी स्थिति में बेरोजगार युवाओं को बेहतर सुविधाओं और सैलरी पैकेज के साथ काम करने का मौका मिलेगा। जापान में वर्कफोर्स की कितनी किल्लत है, इसे इस बात से समझा जा सकता है कि दो साल पहले जापान की 40 प्रतिशत कंपनियों ने सत्तर साल या इससे अधिक उम्र के लोगों को नौकरियों पर रखा है। बस, इस मामले में सबसे बड़ी दिक्कत भाषा की है। दुनिया की सबसे कठिन भाषाओं में जापानी भाषा मानी जाती है। यदि इसकी प्रारंभिक जानकारी देकर भारतीय युवाओं को वहां भेजा जाए तो बात बन सकती है। इसके लिए सबसे पहले भारत सरकार को ही पहल करनी होगी।
-संजय मग्गू
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