हरियाणा विधानसभा का बजट सत्र 20 फरवरी से शुरू हो रहा है। सत्ता पक्ष और विपक्ष ने अभी से अपनी-अपनी तलवारें खींचनी शुरू कर दी है। विपक्ष ने मनोहर सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का फैसला किया है। कांग्रेस ने 24 विधायकों से हस्ताक्षर कराकर विधानसभा अध्यक्ष ज्ञानचंद गुप्ता को अविश्वास प्रस्ताव भेज दिया है। मनोहर लाल ने भी विपक्ष की यह चुनौती स्वीकार कर ली है। इस बात की संभावना पहले से ही जाहिर की जा रही थी कि इस बार बजट सत्र काफी हंगामेदार रहेगा। विपक्ष ने भी इस बार पूरी तैयारी कर ली है, वहीं सत्ता पक्ष भी जवाब देने को तैयार है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने तो यहां तक कहा है कि हम तो चाहते हैं कि विपक्ष हर छह महीने में अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए, ताकि हमें उनकी बातों को सुनने का मौका मिले।
सरकार किस मामले में कहां चूक रही है, इसका भी पता चलेगा और हमारे जवाब से हो सकता है कि कांग्रेस के कुछ लोग प्रभावित हों और वे भाजपा में आ जाएं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि विपक्ष इस बार महंगाई, बेरोजगारी, किसानों के आंदोलन, कानून व्यवस्था जैसे तमाम मुद्दों पर सरकार को घेरने का प्रयास करेगा। विपक्षी दल कांग्रेस पहले से भी इन मुद्दों को लेकर काफी मुखर रहा है। कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा तो कानून व्यवस्था और बेरोजगारी के मुद्दे को लेकर काफी मुखर रहे हैं। वैसे यह सही है कि अविश्वास प्रस्ताव का विधानसभा में गिर जाना तय है। नब्बे सदस्यीय विधानसभा में बहुमत के लिए कुल 46 विधायकों का साथ चाहिए।
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चालीस विधायक खुद भाजपा के हैं, वहीं सहयोगी दल जजपा के दस विधायक है। इसके अलावा एक हलोपा और छह निर्दलीय विधायकों का समर्थन मनोहर सरकार को हासिल है। ऐसी स्थिति में अविश्वास प्रस्ताव पर सरकार के गिरने का कोई सवाल ही नहीं है। इसके बावजूद अविश्वास प्रस्ताव लाकर कांग्रेस उन सभी मुद्दों पर बहस करना चाहती है जिन मुद्दों पर सत्ताधारी दल बातचीत करने से कतराता रहता है। इसमें सबसे बड़ा मुद्दा महंगाई और बेरोजगारी है। वैसे भी लोकसभा चुनाव होने में बहुत ज्यादा दिन नहीं बचे हैं। दो ढाई महीने में आचार सहिंता लागू हो सकती है।
ऐसी स्थिति में कांग्रेस अविश्वास प्रस्ताव के बहाने कुछ सामयिक मुद्दे उठाकर मतदाताओं को लुभाने का प्रयास कर रही है। पिछले कई महीनों से भाजपा पूरी तरह चुनावी मोड में आ चुकी है। वह अपने कार्यकर्ताओं को काम पर लगा चुकी है। वहीं कांग्रेस अभी कमर कस रही है। केंद्रीय नेतृत्व के बार-बार चेतावनी देने के बावजूद कांग्रेस की गुटबाजी थमने का नाम नहीं ले रही है। कांग्रेसी नेता बार-बार मीडिया में बयान देते हैं कि कांग्रेस में कोई गुटबाजी नहीं है, लेकिन उनके कार्यों से गुटबाजी साफ झलकती है। यदि यही हाल रहा तो कांग्रेस को इसके दुष्परिणाम भुगतने होंगे।
-संजय मग्गू
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