सिकंदर यानी अलेक्जेंडर मेसेडोनिया यानी मकदूनिया का ग्रीक शासक था। वह अरस्तू का शिष्य था। कहा जाता है कि उसका पिता फिलिप भी अरस्तू का शिष्य था यानी पिता पुत्र दोनों एक ही गुरु के शिष्य थे। अरस्तू का गुरु प्लेटो था जिसके गुरु सुकरात थे। राजा फिलिप के जिंदा रहते ही सिकंदर ने युद्धों में भाग लेना शुरू कर दिया था। एक बार तो उसने युद्ध के दौरान अपने पिता की जान भी बचाई थी। सिकंदर को विश्व विजयी कहा जाता है, जबकि हकीकत यह थी कि वह उस समय तक ज्ञात पृथ्वी के पंद्रह प्रतिशत भाग का ही शासक था।
फारस के राजा दारा को हराने के बाद उसे अपने ऊपर बहुत घमंड हो गया था। दारा को हराने के बाद जब उसने नगर में प्रवेश किया, तो उसने पाया कि सड़क के दोनों ओर हजारों लोग पंक्ति में खड़े होकर उसका अभिवादन कर रहे हैं। यह देखकर उसके अहम को संतुष्टि मिली। उसने गर्व से लोगों को देखा। कुछ आगे चलने पर उसने देखा कि साधुओं का एक झुंड उधर से चला आ रहा है। उन साधुओं ने सिकंदर की ओर देखना भी जरूर नहीं समझा। अभिवादन करने की बात तो दूर थी। इससे सिकंदर के अहंकार को चोट लगी।
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उसने अपने सैनिकों से उन साधुओं को गिरफ्तार करने का आदेश दिया और कहा कि इन्हें दरबार में पेश करना। शाम को जब दरबार लगा, तो साधु उसके सामने लाए गए। सिकंदर ने पाया कि इन साधुओं के चेहरे पर कोई भाव नहीं है। उसने गर्व से कहा कि तुमने विश्व विजयी का आदर नहीं किया। एक साधु ने कहा कि तुम्हारा विश्व विजय एक तृष्णा है, जो तुम्हारे सिर पर चढ़कर नाच रही है। हमने उस तृष्णा को मिटाकर अपने पांवों के नीचे कर दिया है। हमें तुमसे क्यों डरना चाहिए। यह सुनकर सिंकदर की आंखें खुल गई। उसने सबको आजाद कर दिया।
-अशोक मिश्र
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