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रोजगार सृजन योजना से आदिवासी उद्यमियों ने संवारा जीवन

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मध्य प्रदेश का बड़वानी जिला 1948 से पहले राज्य की राजधानी हुआ करता था। यह छोटा सा राज्य अपनी चट्टानी इलाकों और कम उत्पादक भूमि के चलते अंग्रेज, मुगल और मराठों के शासन से बचा रहा। यह जैन तीर्थ यात्रा का केंद्र चूलगिरि और बावनगजा के लिए मशहूर है। मध्य प्रदेश के दक्षिण पश्चिम में स्थित बड़वानी के दक्षिण में सतपुड़ा एवं उत्तर में विन्ध्याचल पर्वत शृंखला है। करीब 13 लाख की आबादी वाले बड़वानी को 25 मई 1998 को मध्यप्रदेश में जिले का दर्जा मिला। आदिवासी बाहुल्य इस जिले की साक्षरता दर करीब 50 फीसदी से कम है। अति पिछड़ा होने के कारण केंद्र सरकार ने वर्ष 2014 में जिन 112 आकांक्षी जिलों का चुनाव किया था, उनमें बड़वानी भी शामिल है। लेकिन वर्ष 2014 से 2021 के बीच इस जिले ने इतनी तरक्की की कि राज्य नीति आयोग की ग्रेडिंग में यह जिला वर्ष 2021 में प्रदेश के टॉप 10 समृद्ध जिलों में शामिल हो गया है। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि यहां कृषि के साथ-साथ सूक्ष्म उद्योगों की ओर युवाओं ने हाथ आजमाना शुरू किया है।

दरअसल खुद का कारोबार शुरू करने के लिए प्रधानमंत्री रोजगार सृजन योजना के तहत मिलने वाली राशि युवाओं के लिए बहुत उपयोगी साबित हुई है। इसी जिले के तीन आदिवासी संतोष वसुनिया, पवन और लक्ष्मी वाणी ने इस योजना के तहत लोन लेकर अपना कारोबार शुरू किया और आज वह आत्मनिर्भर बन चुके हैं। पेटलावद की 44 वर्षीय संतोष वसुनिया बताती हैं कि जब कोरोना महामारी के दौरान लोग शहर से गांव की ओर पलायन कर रहे थे, तब मेरे मन में एक बात कौंधी कि आखिर इतने लोगों की आजीविका कैसे चलेगी?

क्योंकि उस वक्त तक गांव में कृषि और मजदूरी के अलावा रोजगार के कोई ठोस साधन नहीं थे। अक्सर रोजगार के लिए ग्रामीण पलायन ही करते थे। असंख्य प्रवासियों को इस तरह बदहवास अपने-अपने गांव की ओर लौटते देखकर मैं विचलित हो गई। उसी वक्त मैंने ठान लिया कि निर्वाह के लिए कम वेतन वाले काम करने से बेहतर है कि सरकार से लोन लेकर छोटा व्यवसाय शुरू कर जीवन को सुरक्षित करूं।

वह बताती हैं कि मैंने अपने जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे, बहुत सारी चुनौतियों का सामना किया है। पिता झाबुआ में कृषि मजदूर थे। जब वह सिर्फ चार साल की थी, तब उनके पिताजी गुजर गए। मां को छोटे-छोटे बच्चों को छोड़कर मजदूरी करने जाना पड़ता था। होनहार होते हुए भी वह 10वीं तक ही पढ़ पाई थीं कि उनकी शादी हो गई और वह पति के साथ पेटलावद चली आईं। जहां दो संतान को जन्म दिया। संतोष बताती हैं कि मैं कभी नाउम्मीद नहीं हुई। आत्मनिर्भर होने की इच्छा ने कभी उनका पीछा नहीं छोड़ा। परिवार में दूर-दूर तक व्यवसाय से किसी का कोई नाता नहीं था।

लॉकडाउन खत्म होते ही उसने सौंदर्य प्रसाधन की दुकान खोलने का निर्णय लिया। इस बीच उनका संपर्क ट्रांसफॉर्म रूरल इंडिया (टीआरआई) एंटरप्रेन्योरशिप फैसिलिटेशन हब टीम से हुआ और वह उनकी मदद से व्यवसाय की दिशा में काम करने लगीं। संतोष ने अपनी बचत से एक लाख रुपये का निवेश किया और प्रधानमंत्री रोजगार सृजन योजना के तहत वित्तीय सहायता के रूप में 3.75 लाख रुपये प्राप्त कर अपना व्यवसाय शुरू कर दिया। अब उसका सौंदर्य प्रसाधन के साथ-साथ जलपान इत्यादि से संबंधित एक सफल दुकान भी है। जिससे आज वह न सिर्फ आत्मनिर्भर बन चुकी है बल्कि अपने परिवार को आर्थिक मदद भी कर रही है।

संतोष की तरह पवन जमरे और लक्ष्मी वानी की सफलता बताती है कि ग्रामीण भारत में कितनी मानवीय क्षमताएं मौजूद हैं। ऐसे समय में जब बेरोजगारी चरम पर है, बड़वानी के राजपुर ब्लॉक के चितावल गांव के 20 साल के पवन ने एक उद्यमी के रूप में कदम आगे बढ़ाया है।

वह एक छोटे किसान परिवार से आते हैं और महज आठवीं तक पढ़ाई की है। वह बताते हैं, कि मैंने अपने गांव के पास के एक इलेक्ट्रॉनिक्स की दुकान पर एक दैनिक मजदूर के रूप में काम करना शुरू किया था और प्रतिदिन लगभग 150 से 200 रुपये कमा लेता था। टीआरआई की सुमन सोलंकी ने इलेक्ट्रॉनिक्स में मेरी दिलचस्पी को देखते हुए मुझे ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान से मोबाइल रिपेयरिंग ट्रेनिंग प्रोग्राम में भाग लेने सुझाव दिया और इसमें नामांकन कराने में मेरी मदद भी की।

रूबी सरकार

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