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क्या! कनाडा में भी रुपये चलते हैं?

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कनाडा में पढ़ने के लिए गए सैकड़ों भारतीय छात्रों के सिर पर डिपोर्टेशन की तलवार लटक रही है। इन छात्रों पर आरोप है कि उन्होंने कनाडा आने के लिए फर्जी दस्तावेजों का उपयोग किया था। कनाडा अगर फर्जी दस्तावेजों के आधार पर अगर भारतीय छात्रों को डिपोर्ट करने जा रही है, तो नियमत: गलत नहीं है। अगर मामला ठीक उलट होता यानी कनाडा के सैकड़ों छात्र फर्जी कागजात के सहारे भारत आए होते तो शायद भारत भी यही करता। डिपोर्टेशन का खतरा झेल रहे ज्यादातर छात्र-छात्राएं वे हैं जो वर्ष 2016-17 में कनाडा गए थे। भारत भेजे जाने वाले ज्यादातर छात्र-छात्राओं की पढ़ाई पूरी हो गई है और अब वे कनाडा में रहकर अपना भविष्य बनाना चाहते हैं। इन छात्रों का आरोप है कि स्टडी वीजा के लिए फार्म भरने में मदद करने वाली एजेंसी ने उनके साथ धोखाधड़ी की है। इन एजेंसियों की धोखाधड़ी के चलते उन्हें यह दिन देखना पड़ रहा है। यह सर्वविदित है कि भारत के कुछ राज्यों में खुली वीजा एजेंसिया और ट्रैवल एजेंसियां लोगों के साथ धोखाधड़ी करती हैं। पंजाब में तो कबूतर उड़ाने की परंपरा बहुत पहले से ही है। ट्रैवल एजेंसियां लोगों को किस तरह बेवकूफ बनाती हैं।

 इसकी एक बानगी यह है कि वर्ष 2001 या 2002 की बात है। पंजाब के विभिन्न गांवों और शहरों से आठ-दस लोगों को कनाडा भेजने का पैसा लिया। सारे कागजात दुरुस्त बनवाने का वायदा किया। हर आदमी से दस से पंद्रह लाख वसूले गए। उन्हें अमृतसर के राजासांसी हवाई अड्डे के एक विमान में यह कहकर बैठाया गया कि यह जहाज कनाडा जाएगा। कनाडा में एयरपोर्ट के बाहर हमारा आदमी मिलेगा और तुम्हें एजेंसी तक ले जाएगा। कुछ देर बाद हवाई जहाज उड़ा और आधे घंटे बाद एक एयरपोर्ट पर जहाज लैंड कर गए। कनाडा जाने वाले सभी यात्रा बड़े उत्साह में उतरे। एयरपोर्ट परिसर में ही फलों की एक दुकान थी। पंजाब के आठ-दस व्यक्तियों में से एक ने सोचा कि फल ले लिया जाए। उसने दुकानदार से पूछा-केले कैसे दिए? दुकानदार ने कहा, चालीस रुपये दर्जन। उस व्यक्ति ने कहा कि क्या कनाडा में भी रुपये चलते हैं? दुकानदार ने कहा, बेवकूफ हो क्या? यह कनाडा नहीं, पटना हवाई अड्डा।

इस खबर को तब पंजाब और हरियाणा के अखबारों ने बहुत चटखारे लेकर छापा था। कनाडा में पढ़ने गए सैकड़ों छात्र-छात्राओं के साथ कुछ इसी किस्म की धोखाधड़ी की गई है। भारत सरकार भी इन छात्रों की समस्याओं  को सुलझाने का प्रयास करने में लगी हुई है, लेकिन वह इस मामले में बहुत कुछ नहीं कर सकती है। भले ही छात्र-छात्राओं के साथ धोखाधड़ी हुई, लेकिन गलती सैकड़ों स्टूडेंट्स की ही मानी जाएगी। हालांकि यह भी सही है कि कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने इस मामले में पीड़ित छात्र-छात्राओं के प्रति सहानुभूतिपूर्वक रवैया अपनाने का आश्वासन दिया है, लेकिन वे कितना कर पाएंगे, यह भविष्य बताएगा। लेकिन भारत सरकार को चाहिए कि वह ऐसी एजेंसियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करे ताकि स्टूडेंट्स को परेशानी न हो।

संजय मग्गू

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