इन दिनों भारत सहित पूरी दुनिया में फोर डे वर्किंग को लेकर खूब चर्चा हो रही है। अमेरिका में तो फोरडे वर्किंग का ट्रेंड दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। ऐसा माना जाता है कि भारत में भी चार दिन वर्किंग के लिए लेबर कोड (श्रम कानून) में बदलाव किया गया है, लेकिन अभी इसे लागू नहीं किया गया है। दरअसल, अगर हम काम के घंटों और वर्किंग डे को नियत करने का इतिहास खोजें, तो इसकी शुरुआत 1833 से 1837 के दौरान ही काम के घंटे नियत करने की मांग अमेरिका सहित दुनिया के कई देशों में उठने लगी थी। इस मांग को लागू कराने के लिए विभिन्न देशों में ट्रेड यूनियनों का भी गठन हो गया था। माना जाता है कि सबसे पहली ट्रेड यूनियन इंग्लैंड में ही 1750 के बाद अस्तित्व में आई थी। बाद में दूसरे देशों में भी ट्रेड यूनियनों का गठन हुआ और 1 मई 1886 को दुनिया भर के ट्रेड यूनियनों और मजदूर संगठनों द्वारा समर्थित मजदूरों ने अमेरिका के शिकागो शहर में हड़ताल की।
इस दिन अमेरिकी पुलिस ने लाखों मजदूरों पर बर्बरता से गोलियां चलाई जिसमें एक लाख से अधिक मजदूरों की मौत होने की बात कही जाती है। इस घटना के बाद ही पूरी दुनिया में दैनिक श्रम समय आठ घंटे और एक दिन के अवकाश का नियम लागू किया गया। औद्योगिक क्रांति और मशीनों के लगातार आधुनिक होते जाने की वजह से सन 1940 में अमेरिका की लेबर यूनियनों ने 40 घंटे वर्कवीक की मांग उठाई। इन संगठनों की मांग के आगे अमेरिका सहित कई देशों की सरकारों को झुकना पड़ा और फाइव डे वर्किंग का ट्रेंड शुरू हुआ। लेकिन यूरोप सहित एशियाई देशों में यह नियम कुछ ही क्षेत्रों में लागू हुआ, वह भी कई दशकों बाद। बैंकिंग, रियल एस्टेट सहित कुछ क्षेत्रों में पांच दिन वर्किंग के नियम लागू हैं, लेकिन सभी क्षेत्रों में नहीं। ज्यादातर क्षेत्रों में आठ घंटे और सप्ताह के छह दिन का श्रम समय लागू है।
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अब जब चार दिन कार्यदिवस की बात की जा रही है, तो कुल श्रम समय सिर्फ 35 घंटे की मांग की जा रही है। इसका मतलब है कि कर्मचारियों को प्रतिदिन लगभग नौ घंटे काम करना होगा। पैनासोनिक, किकस्टार्टर और थ्रेडअप जैसी कुछ प्रमुख कंपनियों ने फोर डे वर्किंग प्रणाली को अपना रही हैं। वैसे यदि एक-डेढ़ घंटे अतिरिक्त कार्य करने से लगातार तीन दिन अवकाश के मिल जाते हैं, तो श्रमिकों या कर्मचारियों के लिए कोई घाटे का सौदा नहीं है। लेकिन चूंकि इंसान कोई रोबोट या मशीन नहीं है।
हाड़मांस का बना इंसान जब अपना कार्य शुरू करता है, तो शुरुआती घंटे में उत्पादकता ज्यादा होती है और जैसे-जैसे वह थकता जाता है, वैसे-वैसे उसकी उत्पादकता घटती जाती है। लेकिन जो लोग चार दिन कार्यदिवस के हिमायती हैं, उनका मानना है कि इस नियम के तहत कर्मचारी 80 प्रतिशत समय में सौ प्रतिशत काम करते हैं और अपनी सौ फीसदी तनख्वाह कमाते हैं। ऐसा सोचने वाले इंसान को या तो सुपर ह्यूमन मानते हैं या फिर रोबोट।
-संजय मग्गू
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