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MCF: अवैध निर्माण बनवाना और गिराना बन गया कमाई का जरिया

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राजेश दास

नगर निगम के अधिकारियों की लापरवाही अथवा भ्रष्टाचार की वजह से योजनाबंद तरीके से बसाए गए एनआईटी इलाके की सूरत बुरी तरह बिगड़ चुकी है। यहां चारों तरफ रिहायशी जमीनों पर व्यवसायिक इमारतों का निर्माण हो चुका है। वहीं नियमों को ताक पर रखकर चार से छह मंजिला फ्लैटों का निर्माण किया जा रहा है। लेकिन निगम चंद अवैध निर्माणों को नोटिस भेज कर खानीपूर्ति कर रहा है। करीब छह महीने पूर्व निगम ने एनएच पांच आर की कुछ इमारतों को अवैध बताते हुए नोटिस जारी किया था। लेकिन कार्रवाई के नाम पर आज तक कुछ नहीं हुआ है। एक तरफ निगम तोड़ने का नोटिस जारी कर रहा है, वहीं दूसरी तरफ शहर में हजारों अवैध निर्माण हो रहे हैं। हैरानी की बात तो यह है कि जब अवैध निर्माण होता है, उस समय निगम अधिकारी वहां झांकने तक नहीं जाते। निर्माण कार्य पूरा होने पर अवैध निर्माणों को नोटिस जारी कर अथवा सीलिंग का ड्रामा कर अधिकारियों द्वारा सौदेबाजी की जाती है।

चंद नोटिस, हजारों हो रहे निर्माण

सामाजिक कार्यकर्ता सुरेश चंद्र गोयल ने शहर में रिहायशी जमीनों पर हो रहे अवैध निर्माणों को लेकर 2015 में शिकायत की थी। उस समय निगम ने इस शिकायत को ठंडे बस्ते में डाल दिया था। लेकिन इस दौरान यह शिकायत इधर से उधर घूमती रही। अब निगम ने शिकायत पर संज्ञान लेते हुए जनवरी 2023 में एनएच पांच आर की पांच इमारतों को अतिरिक्त निर्माण तोड़ने का नोटिस जारी किया था। जिसमें निर्माण ने इमारतों के मालिकों को खुद अतिरिक्त निर्माण तोड़ने के आदेश दिये थे। निगम द्वारा कार्रवाई करने पर तोड़फोड़ का खर्च वसूलने की चेतावनी दी गई थी। लेकिन करीब छह महीने गुजरने के बाद भी इमारतें वैसी की वैसी हैं। लेकिन निगम अधिकारियों ने आज तक कोई कार्रवाई नहीं की। वहीं दूसरी तरफ शहर में चारों तरफ धड़ल्ले अवैध निर्माण करने की निगम ने छूट दी हुई है।

सरकार को राजस्व का नुकसान

अवैध निमार्णों के कारण सरकार को करोड़ों रुपये के राजस्व का नुकसान उठाना पड़ता है। ज्यादातर इमारतों का नक्शा ही पास नहीं कराते। यदि नक्शा पास करवाया भी लें तोउसमें गड़बड़ की जाती है। रिहायशी इमारत का नक्शा पास करवा कर व्यवसायिक इमारतें बनाते है। चार मंजिला फ्लैटों के बिल्डर ग्राउंड फ्लोर में पार्किंग की जगह सीएलयू करवाए बिना व्यवसायिक निर्माण करवाते हैं। प्लॉटका बिना सब डिविजन करवाएं छोटे छोटे टूकड़ों में निर्माण कर बेच रहे हैं। ऐसे में सरकार को भारी राजस्व का नुकसान उठाना पड़ रहा है। वहीं दूसरी तरफ अवैध निमार्णों की वजह से शहर के लोगों को कई तरह की परेशानियां हो रही है। अवैध कनेक्शनों के कारण पेयजल की किल्लत रहती है और सीवर का पानी ओवरफ्लो हो कर सडकों पर बहता है। स्टिल्ट पार्किंग के अभाव में लोग वाहन सडकों पर खड़े करते हैं।

निर्माण के दौरान क्यों नहीं रोकते?

चार मंजिला इमारत रातों रात नहीं खड़ी हो सकती है। डीपीसी तैयार कर निगम से कप्लीशन लेकर निर्माण कार्य को आगे बढ़ाया जाता है। लेकिन इस दौरान नगर निगम कर्मचारी उस तरफ झांकने की जरूरत महसूस नहीं करते। लेकिन जब इमारत का निर्माण दो से चार मंजिला तक पहुंच जाता है तो पहले कुछ दलाल किस्म के लोग फिर निगम कर्मचारी मंडराने लगते हैं। इस स्तर तक मामला निपट जाए या फिर भी निर्माण करने वाला अपनी पहुंच का इस्तेमाल कर ले तो सब कुछ शांत हो जाता है। लेकिन बात न बनने पर टीम कार्रवाई के लिए पहुंच जाती है। लेकिन कार्रवाई की बजाए सीलिंग कर बातचीत की गुंजाइश छोड़ दी जाती है। यदि निगम अधिकारी शुरू में ही निर्माण कार्य को रूकवा दें तो लोग नुकसान से बच सकते है और निगम को भी राजस्व मिल सकता है।

सीलिंग के नाम पर खानापूर्ति

आरटीआई कार्यकर्ता रविंद्र चावला का कहना है कि शहर में चारों तर फबड़े पैमान पर अवैध निर्माण जारी है। हर जगह रिहायशी जमीनों पर बिना सीएलयू करवाए व्यवसायिक निर्माण हो रहे है। अवैध निमार्णों के खिलाफ ठोस कार्रवाई न करना नगर निगम के संबंधित अधिकारियों की कार्यशैली पर सवाल खड़े करता है। सीलिंग के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति ही की जाती है।

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