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चुनावों में एआई के उपयोग में सावधानी की जरूरत

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देश के गृहमंत्री अमित शाह का एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें उन्हें अनुसूचित जनजातियों, अनुसूचित जातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण समाप्त करने का झूठा वादा करते हुए दिखाया गया था। इस मामले में तेलंगाना के मुख्यमंत्री सहित कई लोगों को पुलिस ने समन भेजा है। कुछ लोग गिरफ्तार भी किए गए हैं। इन दिनों सोशल मीडिया पर न जाने कितने वीडियो, पोस्ट वायरल हो रहे हैं जो एडिटेड हैं, एआई यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग करके बनाए गए हैं। ऐसा करने वाले देश की राजनीतिक पार्टियों के आईटी सेल के मेंबर्स भी हैं। कुछ अपराधी प्रवृत्ति के लोग तो इसमें शामिल ही हैं। वोटर्स को प्रभावित करने और उन तक सीधी पहुंच बनाने के लिए राजनीतिक दल अपने नेताओं के एआई निर्मित पर्सनलाइज्ड संदेशों से लेकर क्लोन आवाजों वाले मैसेज का उपयोग कर रहे हैं।

द इंडियन डीपफेकर और पॉलीमैथ जैसे स्टार्ट अप देश की राजनीतिक हस्तियों के वीडियो बनाने में एआई का उपयोग कर रहे हैं। ये स्टार्ट अप चेहरे की विशेषताओं को अलग करने के साथ स्वर पैटर्न का विश्लेषण करके एआई एल्गोरिदम जीवंत अवतार बनाकर सोशल मीडिया पर पोस्ट कर रहे हैं। सोशल मीडिया पहले ही विश्वसनीयता के संकट के दौर से गुजर रहा है। फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्वीटर, यूट्यूब जैसे माध्यमों पर पहले से ही हजारों फेक वीडियो, पोस्ट डाली गई हैं जिनकी विश्वसनीयता साबित नहीं हो पाई है। ऐसी स्थिति में यदि एआई का उपयोग करके राजनीतिक दलों ने अपने लोकप्रिय नेताओं का वीडियो या संदेश बनाकर डाला तो यह भी संभव है कि लोग इसको भी फेक मानकर दरकिनार कर दें। इससे इन दलों के आईटी सेल का मंतव्य भी पूरा नहीं होगा।

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आईटी विशेषज्ञों का मानना है कि एआई का उपयोग करके विदेश में बैठे अराजक तत्व भारतीय चुनाव को प्रभावित कर सकते हैं, इसकी आशंका बहुत ज्यादा है। वैसे तो भारत सरकार इस मामले में काफी सतर्क है, लेकिन चूक की आशंका तो हमेशा बनी ही रहती है। आशंका तो यह भी जताई जा रही है कि जैसे-जैसे एआई का उपयोग हमारे जीवन में बढ़ता जाएगा, वैसे-वैसे वोटर्स के लिए असली और नकली की पहचान करना मुश्किल होता जाएगा। वोटर्स यही नहीं समझ पाएगा कि असली वीडियो कौन है और नकली कौन? इसका फायदा विरोधी दल उठा सकते हैं।

जब भी कोई नई टेक्नॉलाजी आती है, तो वह अपने साथ कई तरह की विसंगतियों को भी लाती है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंसी का उपयोग मानव समाज के हित में हो सकती है, लेकिन इस बात से कौन इनकार कर सकता है कि इस टेक्नॉलॉजी का उपयोग बुरे इरादे से किया जा सकता है। कोई जरूरी है कि हर आदमी की मंशा पाक-साफ हो। अब भी समय है। यदि हमने एआई के संबंध में कोई ठोस नीति नहीं बनाई गई, तो इसका खामियाजा हमें भुगतना पड़ सकता है। वैसे सरकार ने डीपफेक पर लगाम लगाने के लिए कई तरह के उपाय किए हैं, लेकिन वे शायद आने वाले दिनों में पर्याप्त साबित नहीं होंगे।

Sanjay Maggu

-संजय मग्गू

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