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अपनी हार पर हरियाणा सरकार को मंथन करना ही होगा

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चार जून को आए लोकसभा चुनाव के परिणाम प्रदेश भाजपा सरकार और संगठन के लिए कुछ विशेष संकेत देते हैं। पहली बात तो यह है कि प्रदेश में ही नहीं पूरे उत्तर भारत में अब मोदी मैजिक नहीं चलने वाला है। हरियाणा में पीएम नरेंद्र मोदी और उनकी गारंटी के भरोसे प्रदेश की दसों से सीटों पर कमल खिलाने का मनसूबा बांधने वालों को पांच-पांच पर मैच को ड्रा कराकर संतोष करना पड़ा। दूसरी बात यह है कि लोगों की नाराजगी को बहुत देर तक नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। नाराजगी जब फूटती है, तो अपने साथ बहुत कुछ बहा ले जाती है। प्रदेश में किसानों, सरकारी कर्मचारियों और सरपंचों, पार्षदों की नाराजगी भाजपा को बहुत भारी पड़ी।

यदि प्रदेश सरकार ने थोड़ी बहुत सदाशयता दिखाई होती और इन लोगों के प्रतिनिधियों से बातचीत करने, उनकी मांगों और समस्याओं पर विचार किया होता, तो शायद चार जून की तस्वीर कुछ दूसरी होती। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। तीसरी बात यह है कि जनता की सबसे बड़ी जरूरत यह होती है कि उसे भरपेट खाना मिलता रहे। इसके लिए जरूरी है कि उसे रोजी-रोजगार हासिल रहे। महंगाई पर नियंत्रण रहे ताकि वह जो कुछ भी कमा रहा है, उसमें से चार पैसे भविष्य के लिए वह बचा सके। यदि देखा जाए तो राम मंदिर का निर्माण और उसमें मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा, धारा-370, तलाक जैसे तमाम मुद्दे उसको भावनात्मक रूप से थोड़ी देर के लिए तो जोड़ सकते हैं, लेकिन जब वास्तविक जीवन की समस्याएं सामने हों, तो इन मुद्दों की अहमियत स्वाभाविक रूप से कम हो जाती हैं।

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धर्म या आस्था किसी भी व्यक्ति का व्यक्तिगत मसला है। कोई धर्म पर आस्था रखे या न रखे, रखे भी तो किस हद तक, यह उसके विवेक पर है। इस चुनाव ने एक बात यह भी साबित कर दी है कि शहरी क्षेत्र में भाजपा का जनाधार घटा है। पिछले लोकसभा चुनाव में 58.2 प्रतिशत वोट हासिल करके सूबे की दसों लोकसभा सीटों पर अपनी सफलता का परचम लहराने वाली भाजपा का इस बार वोट बैंक घटकर 46 पर आ गया था।

 शहरी क्षेत्र में भाजपा के प्रत्याशियों के प्रति पहले से ही कुछ नाराजगी थी। उस नाराजगी को भाजपा ने हलके में लिया जिसका नतीजा उसे भोगना पड़ा। कांग्रेस शुरुआत में ही भाजपा के मुकाबले काफी कमजोर थी। भाजपा ने अपने प्रत्याशी भी पहले घोषित कर दिए थे, लेकिन कमजोर संगठन और आपसी गुटबाजी के बावजूद यदि कांग्रेस पांच सीटों पर विजय पताका फहरा गई, तो इसके पीछे शहरी मतदाताओं की नाराजगी और मोदी मैजिक पर विश्वास करके अपनी जगह मोदी की उपलब्धियों को गिनाना पूरी भाजपा पर भारी पड़ गया। अब जब तीन महीने बाद विधानसभा चुनाव होने हैं, तो भाजपा को अपनी हार पर मंथन करना ही होगा।

संजय मग्गू

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