इन दिनों देश के 24 लाख बच्चे आंदोलित हैं। समझ नहीं पा रहे हैं कि वे आखिर करें तो क्या करें? नीट परीक्षा परिणाम में धांधली और ग्रेस मार्क्स की नई प्रणाली ने उनके सपनों को चकनाचूर कर दिया है। यह सोचकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं कि जो बच्चा इस करप्ट सिस्टम के चलते सिर्फ एक नंबर से पिछड़ गया होगा, वह क्या जीवन भर इस सिस्टम को कसूरवार नहीं ठहराएगा? वह परीक्षा प्रणाली पर कैसे विश्वास कर पाएगा? परीक्षाएं आयोजित करने वाली संस्था, सरकार और प्रशासन सब पर से उसका विश्वास टूट जाएगा, वह जीवन भर इस पल को कोसेगा? इस बात की भी पूरी-पूरी आशंका है कि भविष्य में जब कभी उसे मौका मिलेगा, वह भी इस भ्रष्ट व्यवस्था में इस कदर डूब जाएगा, मानो वह इस भ्रष्ट परीक्षा व्यवस्था से अपना प्रतिशोध ले रहा हो।
यही वह समय है, जब बच्चे सपने देखते हैं, सपनों को एक आकार देना चाहते हैं, वे सुखद भविष्य की कल्पना करते हैं, लेकिन सिस्टम की एक भूल उन्हें हमेशा के लिए बागी बना देती है। पूरे देश में राष्ट्रीय पात्रता एवं प्रवेश परीक्षा यानी नीट के आए परिणाम को लेकर हाहाकार मचा हुआ है। देश भर में युवा आंदोलित हैं, अपनी जायज मांगों को लेकर कहीं लाठियां खा रहे हैं, तो कहीं पुलिसिया अत्याचार को बर्दाश्त कर रहे हैं। सुप्रीमकोर्ट अलग से चिंतित है। एनटीए को फटकार रही है, सरकार से जवाब मांग रही है, लेकिन कहीं से कोई जवाब नहीं मिल रहा है। न सुप्रीमकोर्ट को, 24 लाख युवाओं को, न उनके मां-बाप को कि इन बच्चों का भविष्य क्या होगा? व्यवस्था निरंकुश है, सरकारें संवेदनहीन। किसके सिर पर ठीकरा फोड़ा जाए, इसके लिए एक सिर की तलाश की जा रही है।
देश के शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान पहले तो बड़े ठसक के साथ नीट परीक्षा परिणाम में किसी गड़बड़ी की आशंका से ही इनकार करते रहे। लेकिन जब पेपर लीक, कई सेंटरों पर गड़बड़ियों के प्रमाण मिलने लगे, पुलिस ने आरोपियों को गिरफ्तार करना शुरू किया, तब बड़ी मुश्किल से यह मानने को तैयार हुए कि गड़बड़ी तो हुई है। यह कोई पहली गड़बड़ी नहीं है। पिछले सात साल में पेपरलीक की 70 से अधिक घटनाएं हो चुकी हैं। इन सभी घटनाओं में डेढ़ करोड़ से अधिक बच्चे प्रभावित हो चुके हैं।
इन डेढ़ करोड़ बच्चों के माता-पिता अपनी छाती पीटकर, आंसू बहाकर चुप हो चुके हैं कि अब कुछ नहीं होने वाला है। इन करोड़ों निराश मां-बाप को आप लाख विकास के आंकड़े दिखाएं, तीर्थ स्थल को बनाने-ढहाने के किस्से सुनाएं, विश्व गुरु होने के फायदे गिनाएं, इन्हें किसी भी बात पर विश्वास नहीं आएगा। इनके बच्चे का भविष्य जो अंधकारमय हो गया। एक तो नौकरी पहले से ही सीमित होती जा रही है, ऊपर से प्रतियोगी परीक्षाओं में गड़बड़ी, पेपरलीक जैसी घटनाएं युवाओं को तोड़कर रख देती हैं। वे निराशा में आत्महत्या कर लेते हैं। अपराध का रास्ता अख्तियार कर लेते हैं। फिर इन युवाओं को कानून व्यवस्था बनाए रखने के नाम पर ‘ठोक ’कर सरकारें सुशासनी होने का दिखावा करती हैं। अब भी समय है, चेत जाइए, युवाओं को बागी होने से बचाइए, नहीं तो…न यह व्यवस्था रहेगी, न सरकारें।
-संजय मग्गू