महर्षि चरक का जीवन काल ईसा पूर्व तीन सौ-दो सौ साल माना जाता है। सोना, लोहा, पारा और चांदी जैसी धातुओं के भस्म से रोगों को दूर करने की जानकारी सबसे पहले चरक ने दी थी। उन्हें प्राचीन चिकित्सा विज्ञान का जनक माना जाता है। इनके द्वारा रचित चरक संहिता प्राचीन ग्रंथ है। कहा जाता है कि महर्षि चरक द्वारा रचित चरक संहिता में बौद्ध मत का जमकर विरोध किया गया है। इसलिए इनका जन्म महात्मा बुद्ध के बाद माना जाता है।
बात तब की है, जब चरक एक गुरुकुल में अध्ययन कर रहे थे। गुरुकुल के नियमों के अनुसार, उन्हें वन में जाकर औषधियों को खोजने और उन्हें गुरुकुल तक लाने का काम सौंपा गया था। यहीं से उनमें औषधियों के प्रति जिज्ञासा हुई और बाद में उन्होंने आयुर्वैदिक चिकित्सा की नींव रखी। कहते हैं कि एक बार उनके शरीर में एक फोड़ा निकल आया। फोड़े की वजह से उन्हें बहुत पीड़ा हो रही थी। उनके गुरु ने कहा कि वन में जाकर औषधी खोजकर इस फोड़े पर लगाओ। नहीं तो यह फोड़ा तुम्हें नुकसान पहुंचा सकता है। गुरु की बात मानकर वह जंगल में गए।
उन्होंने तमाम पेड़-पौधों को देखा, उनका परीक्षण किया, लेकिन उन्हें फोड़े से आराम मिले और फोड़ा ठीक हो जाए, ऐसी कोई औषधि नहीं मिली। वह औषधि की खोज में इधर-उधर भटकते फिरे। अंत में निराश होकर गुरुकुल लौटे। उन्होंने जंगल में जो कुछ देखा, सुना और जो परीक्षण किया, उसके बारे में बताया। तब गुरु जी ने कहा कि आश्रम के पीछे एक पौधा लगा है, उसकी पत्तियों का रस निचोड़ कर लगा लो ठीक हो जाएगा। तब चरक ने कहा कि गुरु जी, यह बात आप मुझे पहले बता सकते थे। गुरु जी बोले, तब तुम इतनी औषधियों का ज्ञान कैसे पा सकते थे।
-अशोक मिश्र