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सादगी से जिये और सादगी से मर गए मानेकशॉ

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सैम होर्मूसजी फ्रेमजी जमशेदजी मानेकशॉ, जहां भारतीय सेनाध्यक्ष और भारत के फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ का यही पूरा नाम था। लोग उन्हें बड़े प्यार और अदब से सैम बहादुर भी कहते थे क्योंकि उनका संबंध गोरखा रेजीमेंट से था। कहा जाता है कि जब वे सेनाध्यक्ष थे, तब आर्मी हाउस की सुरक्षा गोरखा रेजिमेंट के जवान ही करते थे। उन दिनों वे आर्मी हाउस में ही रहा करते थे। लोगों का यह भी कहना है कि जब वह आर्मी हाउस में रहते थे, तो सुबह-सुबह वॉक के लिए निकलते थे। उस दौरान उस एरिया में आने-जाने वाले लोग उनका अभिवादन करते थे।

वह प्रत्येक आदमी के अभिवादन का जबाव बड़े प्यार और सम्मान के साथ दिया करते थे। उनमें अपने पद का तनिक भी अभिमान नहीं था। वह रहते भी बहुत साधारण ढंग से थे। सन 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुई जंग में सैम मानेकशॉ ने अपने जत्थे के साथ पाकिस्तानी सेना की कमर तोड़ दी थी। बांग्लादेश में 91 हजार पाकिस्तानी सैनिकों को भारतीय सेना की वीरता और पराक्रम के आगे घुटने टेकने पड़े और उन्हें आत्म समर्पण करना पड़ा। पूरी दुनिया के सैन्य इतिहास में इतनी बड़ी फौज का आत्म समर्पण पहली घटना थी।

मानकेशॉ स्पष्ट वक्ता भी थे। वे जब भी बोलते थे, वे स्पष्ट बोलते थे। चीन से 1962 में चीन से हुए युद्ध के परिणाम पर चर्चा करते हुए उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से साफ कहा था कि हमार सेना बड़ी बहादुर से लड़ी, लेकिन हम कमजोर नेतृत्व के कारण हारे। हमें हमारे नेतृत्व ने पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। यह सुनकर पीएम नेहरू चुप रह गए थे। 27 जून 2008 को जब उनका निधन तमिलनाडु के वेलिंग्टन शहर में हुआ तो बड़ी सादगी से उनकी अंत्येष्टि कर दी गई।

-अशोक मिश्र

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