राम शास्त्री प्रभूणे का जन्म सतारा के माहुली गांव में 1724 को हुआ था। जब उनकी शिक्षा-दीक्षा पूरी हो गई, तो माधव राव पेशवा के दरबार में उनको प्रधान न्यायपति के रूप में नियुक्त किया गया। बात तब की है, जब राम शास्त्री प्रधान न्यायपति नहीं नियुक्त किए गए थे। उन दिनों बाजीराव पेशवा मराठों के सेनापति थे। मालवा प्रदेश का एक बड़ा हिस्सा जीतने के बाद बाजीराव पेशवा लौट रहे थे, तो उन्होंने पाया कि भंडार खाने में अनाज की कमी हो गई है। उन्होंने अपने एक सरदार को पास के गांव में अनाज खोजकर लाने को कहा। वह सरदार आसपास के गांवों में गया, लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ क्योंकि युद्ध के चलते सब नष्ट हो गया था।
थोड़ा और दूर जाने पर राम शास्त्री से उसकी मुलाकात हुई तो उसने अपनी समस्या बताई। तब राम शास्त्री उसे लेकर एक गांव में पहुंचे। एक खेत में बहुत अच्छी फसल लगी हुई थी। इसके बाद रामशास्त्री उसे एक दूसरे खेत में ले गए जहां की फसल पहले वाली से थोड़ी खराब थी। सरदार भड़क गया कि उसे मूर्ख समझते हो। तब रामशास्त्री ने कहा कि वह खेत मेरा नहीं था। यह खेत मेरा है, इसमें से जितना चाहो उतना अनाज ले सकते हो। मैं दूसरे के खेत से अनाज लेने की बात कैसे कह सकता हूं। इससे वह सरदार राम शास्त्री से बहुत प्रभावित हुआ।
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एक दूसरी घटना है। जब राम शास्त्री प्रधान न्यायपति थे तो उनके सामने विद्वानों की एक सूची पेश की गई जिनको पेशवा दरबार की ओर से सम्मानित किया जाना था। उस सूची में एक नाम देखकर वह भड़क उठे कि यह कहां का विद्वान है? हटाओ, इसका नाम तुरंत इस सूची से हटाओ। वह नाम उनके पुत्र गोपाल शास्त्री का था। उन्होंने कहा कि क्या इसी अनीति के लिए मुझे प्रधान न्यायपति बनाया है।
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