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HomeEDITORIAL News in Hindiअब तो चुनाव को लेकर बदलने लगा मतदाताओं का मिजाज

अब तो चुनाव को लेकर बदलने लगा मतदाताओं का मिजाज

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लोकसभा चुनाव का परिदृश्य ही इस बार बदला हुआ नजर आ रहा है। लग ही नहीं रहा है कि यह लोकसभा चुनाव का माहौल है। अब तक लोकसभा चुनावों का ट्रेंड यही रहा है कि राष्ट्रीय मुद्दों पर लोकसभा के चुनाव लड़े जाते थे। राजनीतिक दल राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर अपने विरोधियों को घेरने का प्रयास करते थे। सत्ताधारी दल अपनी राष्ट्रीय स्तर की उपलब्धियों को जनता के बीच पहुंचाता था। विरोधी दल उन उपलब्धियों को नकारते हुए उनकी कमियों की ओर सबका ध्यान खींचता था। नीतियों की आलोचना ही विपक्षी दलों का मुख्य ध्येय हुआ करता था।

विधानसभा चुनावों में प्रदेश स्तर वाली समस्याएं, मुद्दे हुआ करते थे। लेकिन इस बार राष्ट्रीय मुद्दे तो जैसे हवा हो गए हैं। भाजपा के राष्ट्रीय और प्रादेशिक स्तर के नेताओं ने कई बार प्रयास किया कि इस बार का चुनाव धारा 370, तीन तलाक, मोदी सरकार की विदेशों में लोकप्रियता, विकसित भारत 2047, राम मंदिर निर्माण और प्राण प्रतिष्ठा जैसे मुद्दों पर लड़ा जाए, लेकिन जनता ने इन मुद्दों को न केवल नकार दिया, बल्कि सड़क, बाईपास, महंगाई, बेरोजगारी, गांवों का विकास जैसे एकदम स्थानीय मुद्दों को लेकर सभी राजनीतिक दलों को घेरना शुरू कर दिया है।

यह भी पढ़ें : प्रदेश में किसी पार्टी की लहर नहीं, मुद्दों पर ही बनेगी बात

हरियाणा में तो अब हालत यह है कि लोग सत्ताधारी दल भाजपा, उसकी सहयोगी रही जजपा, विपक्षी दल कांग्रेस और इनेलो से सवाल करने लगे हैं। भाजपा और जजपा के प्रत्याशियों और नेताओं को शहर और गांव के लोग घेरकर सवाल पूछने लगे हैं। वे सबसे यही पूछते हैं कि पिछले पांच साल में आपने हमारे गांव या शहर के लिए क्या किया? किसान सत्तापक्ष से एमएसपी और उसके द्वारा किए गए आंदोलन के दौरान सरकार के रवैये को लेकर सवाल पूछ रहा है। विपक्ष से वह पूछ रहा है कि एमएसपी पर उनका क्या रवैया है। किसान आंदोलन के दौरान खुलकर वे उसके पक्ष में क्यों नहीं आए? अब तो हालात यह है कि राजनीतिक दलों की छोटी-छोटी जनसभाओं में जाकर वह प्रत्याशी से बहस कर रहा है। वह अपने गांव या मोहल्ले की सड़क, बिजली, पानी, स्कूल और स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर सवाल उठा रहा है।

पूरे उत्तर भारत में पड़ रही प्रचंड गर्मी की वजह से राजनीतिक दलों ने बड़ी-बड़ी रैलियां या जनसभाएं करने की जगह छोटी-छोटी रैलियां और जनसभाएं करने की नीति अपनाई है ताकि अधिक से अधिक लोगों तक अपनी बात पहुंचाई जा सके। इसका फायदा रैली या जनसभा में आने वाले किसान और युवा उठा रहे हैं। युवाओं ने सभी दलों से रोजगार और महंगाई जैसे मुद्दे उठाना शुरू कर दिया है। वे नेताओं के भाषण सुनने की अपेक्षा सवाल जवाब करने में ज्यादा रुचि ले रहे हैं। वे बस यही पूछ रहे हैं कि पांच साल क्या किया, भविष्य में क्या करोगे?

Sanjay Maggu

-संजय मग्गू

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