आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी हिंदी के महान साहित्यकार, पत्रकार और समीक्षक थे। उन्होंने हिंदी साहित्य को एक नया स्वरूप प्रदान किया था। उनके चलते ही हिंदी भाषा और साहित्य में निखार आया। उनका जन्म 9 मई 1864 को उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले में हुआ था। इनकी पढ़ाई लिखाई भी बचपन में धनाभाव के कारण नहीं हो पाई थी। कम उम्र में ही इन्हें नौकरी करनी पड़ी और नौकरी करने के साथ-साथ द्विवेदी जी ने अपनी पढ़ाई भी जारी रखी। महावीर प्रसाद द्विवेदी जी कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। उन दिनों छुआछूत का बोलबाला था।
एक बार वे अपने गांव में खेतों को देखने के बाद घर की ओर जा रहे थे। तभी उन्हें किसी महिला की चीख सुनाई दी। उन्होंने जाकर देखा कि एक दलित महिला के पैर में सांप ने काट लिया है। अब वे क्या करें। तभी उन्होंने कुछ सोचकर अपना जनेऊ उतारा और पैर में बांध दिया। उन्होंने चीरा लगाकर विषैला रक्त निकाल दिया। उस महिला की जान बच गई। जब द्विवेदी महिला की मदद कर रहे थे, तभी उनके गांव के ही कुछ अन्य ब्राह्मण वहां मौजूद थे।
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उन्होंने जनेऊ को दलित महिला के पांव में बांधा जाना अच्छा नहीं लगा। उन्होंने महावीर प्रसाद का विरोध किया। यह सुनकर द्विवेदी जी ने वहां उपस्थित लोगों को फटकारते हुए कहा कि इस जनेऊ की वजह से एक महिला की जान बच गई, यह तुम्हें नहीं दिखाई देता है। अगर जनेऊ से किसी की जान बचती है, तो मैं इसे हमेशा जीवन भर पहनने की सौगंध लेता हूं। मेरे इस कार्य से ब्राह्मणत्व को किसी भी प्रकार नुकसान नहीं पहुंचा है। महावीर प्रसाद की यह बात सुनकर वहां चकित लोग शर्मिंदा हो गए। लोगों ने वहां से चुपचाप खिसक लेने में ही भलाई समझी। द्विवेदी जी इंसानियत को सबसे बड़ा धर्म समझते थे।
-अशोक मिश्र
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