आत्मनिर्भर आदमी किसी भी परिस्थिति में हार नहीं मानता है। यदि किसी व्यक्ति को मांगकर खाने की लत लग गई, तो वह हमेशा श्रम करने से कतराएगा। दान पर निर्भर रहने वाले लोगों का जीवन स्तर हमेशा दयनीय ही रहता है। वे जीवन स्तर को ऊंचा उठाने की दिशा में प्रयत्न ही नहीं करते हैं। जीवन किसी तरह बीत रहा है, उनके लिए बस यही काफी है। लेकिन जो परिश्रमी है, स्वाभिमानी है, वह कभी दान पर निर्भर रहना पसंद नहीं करेगा। इस संदर्भ में एक प्रेरक प्रसंग है। एथेंस के महान दार्शनिक जीनो लोगों को दर्शनशास्त्र पढ़ाया करते थे।
वैसे जीनो के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं मिलती है। एथेंस के महान दार्शनिक सुकरात, प्लेटो, अरस्तू की तरह उनके बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है शायद। जीनो लोगों को अपने दार्शनिक विचारों से अवगत करवाते थे, लेकिन उसकी वे कीमत वसूलते थे। एथेंस में ही एक युवक था, जो जीनो से दर्शनशास्त्र पढ़ना चाहता था, लेकिन उसके पास फीस चुकाने के पैसे नहीं थे। उसने पढ़ने के लिए एक अमीर आदमी के यहां नौकरी कर ली और जो कुछ मिलता, वह जीनो को समर्पित कर देता। वह पढ़ने में तेज था।
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इसलिए दूसरे लोगों की आंख में खटकने लगा। लोगों ने उस पर चोरी का इल्जाम लगा दिया। जब मामला न्यायालय में पहुंचा, तो उसने चोरी से इनकार करते हुए उस अमीर को गवाह के रूप में बुलाया जिसके यहां काम करता था। उसके आत्मसम्मान को देखकर न्यायाधीश बहुत खुश हुआ और उसने अपनी तरफ से शुल्क अदा करने का प्रस्ताव रखा। युवक ने प्रस्ताव को अस्वीकार करते हुए कहा कि मैं अपनी मेहनत की कमाई से शुल्क अदा करना चाहता हूं। जीनो ने भी हंसते हुए कहा कि मैं चाहता हूं कि आप इसे आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ने दें।
-अशोक मिश्र
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