क्रोध करना हमेशा अच्छा नहीं होता है। इसके दुष्परिणाम जब सामने आते हैं, तो आदमी के पास पछताने के सिवा दूसरा कोई रास्ता नहीं बचता है। हमारे पूर्वजों ने हमेशा क्रोध, काम, मद, मोह, लोभ और मत्सर जैसे विकारों से बचने को कहा है। यह छह विकार मनुष्य को बरबाद करके रख देते हैं। इन विकारों वाला आदमी सिर्फ हैवान बनकर रह जाता है। किसी गांव में एक युवक था। उसे बात-बात में गुस्सा आता था। नतीजा यह हुआ कि उसके सभी परिचित उससे कतराने लगे। एक दिन जब युवक को काफी गुस्सा आ रहा था, तब उसके पिता ने उसे कीलों से भरी एक थैली देते हुए कहा कि जब भी तुम्हें गुस्सा आए, तो इस कील को फलां दरवाजे पर गाड़ देना।
पहले दिन युवक ने दरवाजे पर दो दर्जन से अधिक कील गाड़े। कुछ दिनों बाद उस युवक ने सोचा कि कील गाड़ने से अच्छा है कि क्रोध पर ही नियंत्रण पाया जाए। धीरे-धीरे एक दिन ऐसा भी आया जब युवक ने दरवाजे पर कोई कील नहीं गाड़ी अर्थात उस दिन उसने कोई क्रोध नहीं किया। यह बात उसने अपने पिता को बताई। उसका पिता खुश हुआ,
लेकिन उसने अपने पुत्र को एक नया काम बता दिया। उसने कहा कि अब जिस दिन तुम किसी पर क्रोध नहीं करना, उस दिन तुम इस दरवाजे से एक कील उखाड़ देना। वह दिन भी जल्दी आ गया, जब दरवाजे पर गड़ी आखिरी कील भी उखड़ गई। पुत्र ने जाकर अपने पिता यह बात बताई, तब उसके पिता ने कहा कि क्या तुम इस दरवाजे पर बने छेद को भर सकते हो? तुम्हारे क्रोध का यही नतीजा है। तुमने जिस पर क्रोध किया, उसके दिल में हमेशा के लिए एक घाव बन गया जो जीवन भर उसे खटकता रहेगा। क्रोध करने का नतीजा कितना खतरनाक होता है, यह तुम जान चुके हो। युवक ने कभी क्रोध न करने का संकल्प लिया।
-अशोक मिश्र
लेटेस्ट खबरों के लिए क्लिक करें : https://deshrojana.com/