Wednesday, January 15, 2025
11.1 C
Faridabad
इपेपर

रेडियो

No menu items!
HomeEDITORIAL News in Hindiपरेशानी को झटकिए और जोर से बोलिए-होली है!

परेशानी को झटकिए और जोर से बोलिए-होली है!

Google News
Google News

- Advertisement -

सोचता हूं, अगर रंग नहीं होते तो कितनी बेरंग होती दुनिया। रंग हैं, तो सौंदर्य है। सौंदर्य है तो जीवन है। जीवन है तो गति है। गति की वजह से ही दुनिया खूबसूरत और रंगीन नजर आती है। यह प्रकृति, यह पहाड़, ये नदियां। नदियों, तालाबों में रंग-बिरंगी मछलियां और इन मछलियों की जल में ही लुका-छिपी, कितना सुंदर समां बांधती हैं। रंगों का हमारे जीवन में कितना महत्व है, उस व्यक्ति से जाकर पूछिए जिसने कभी रंगों को देखा ही न हो, जो जन्म से दृष्टिहीन हो। कैसी लगती होगी उसके लिए दुनिया? एकदम घुप्प अंधेरा जैसा। ऐसे व्यक्ति के लिए क्या काला, क्या लाल, क्या नीला, क्या पीला, सब एक समान है। हम तो कम से कम इतने भाग्यशाली तो हैं कि इस प्राकृतिक वैभव को देख सकते हैं।

प्रकृति ने हर चप्पे-चप्पे पर पहले तो रंग बिखेरे और फिर उसको देखने के लिए आंखें और प्राकृतिक सुषमा का वर्णन करने के लिए जिह्वा दी। इन्हीं रंगों की वजह से हममें उल्लास पैदा होता है। प्रकृति में बिखरे रंगों के महत्व को जानकर ही तो हमारे पुरखों ने रंगों के त्यौहार होली की शुरुआत की थी। रंगों के संपर्क में आते ही मन में खुशियां हिलोर लेने लगती हैं। प्रकृति मादक हो उठती है। हो भी क्यों न। तीन से चार महीने की हांड़ कंपा देने वाली ठंडक से निजात जो मिली है। प्रकृति तो खुली-खुली लग ही रही है, मन और तन भी खुला खुला सा लग रहा है। ऐसे में अगर मन बौराने लगता है, सब ओर प्रेम ही प्रेम बिखरा महसूस होने लगता है, इसमें उसका कसूर ही क्या है।

यह भी पढ़ें : दोस्त की जगह खुद मरने को तैयार हुए नूरी

मतवाला मन किसी को छेड़ने, परिहास करने को मचल ही जाता है और यह अवसर मुहैया करता है होली का त्यौहार। इसमें रिश्ते-नातों पर जमी बर्फ पिघल जाती है। शायद यही कारण है कि कहा जाता है कि फाल्गुन में बाबा भी देवर लगने लगते हैं। एकदम पक्का समाजवादी त्यौहार है होली। कोई छोटा-बड़ा नहीं, कोई ऊंच-नीच नहीं। स्त्री-पुरुष का भेद भी काफी हद तक मिट जाता है। सब उल्लसित, प्रफुल्लित नजर आते हैं। ऐसे मौके पर अगर वह आदमी भी आ जाए जिससे कुछ रोज पहले लड़ाई हुई थी, किसी बात को लेकर मनमुटाव हुआ था, तो भी सब कुछ भूलकर गले लगा लेने का मन करता है। ऐसा करना भी चाहिए।

दुश्मनी या मनमुटाव का बोझ लेकर आदमी कितने दिन रह सकता है? इससे अपना ही तो नुकसान होना है। हर समय तनाव बना रहेगा। इन तमाम बातों के बाद एक बात यह भी सही है कि अब बहुसंख्य आबादी के लिए होली का त्यौहार बोझ जैसा लगने लगा है। बच्चों के लिए नए कपड़े, घर का सारा सामान, त्यौहार पर होने वाला अतिरिक्त खर्च और उस पर आसमान छूती महंगाई। घटती आय और घर में बेरोजगार बैठे बेटा-बेटी। आज के दौर में कहां तक झेले आदमी। इसके बावजूद रस्म अदायगी ही सही त्यौहार तो मनाना ही पड़ेगा। तो फिर देर किस बात की है। जब त्यौहार मनाना ही है, तो उठाइए रंगों से भरी झोली और अपने प्यारी या प्यारे को कर दीजिए प्रेम रंग से सराबोर और जोर से चिल्लाइए-बुरा न मानो होली है। देशवासियों को होली की शुभकामनाएं।

Sanjay Maggu

-संजय मग्गू

लेटेस्ट खबरों के लिए क्लिक करें : https://deshrojana.com/

- Advertisement -
RELATED ARTICLES
Desh Rojana News

Most Popular

Must Read

लापरवाही बरतने वाले अफसरों पर अब कसेगा शिकंजा

संजय मग्गूसरकार किसी भी दल की हो, उसका कामकाज अधिकारियों के भरोसे ही चलता है। मंत्री, विधायक या सांसद निर्देश देते हैं और अधिकारी...

Recent Comments