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अहंकार में चूर नेतन्याहू का साथ छोड़ता अमेरिका

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पिछले साल 7 अक्टूबर को जब हमास ने इसराइल पर हमला किया था तो पूरी दुनिया लगभग दो हिस्सों में बंट गई थी। एक तरफ तो वह लोग थे, जो हमास के हमले को पूरी तरह गलत मानते थे, लेकिन फिलिस्तीनियों के हक में खड़े थे। दूसरी ओर वह लोग थे जो फिलिस्तीनियों और हमास के खिलाफ थे और इसराइल के पक्ष में थे। भारत एक ऐसा देश है जो अधिकार के मामले में फिलिस्तीनियों के साथ है और जवाबी हमला करने के मामले में इसराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के साथ है। शुरूआती कशमकश के बाद भारत में यह साफ कर दिया है कि वह अपने पुराने स्टैंड पर कायम है। मतलब यह है कि भारत राजनीतिक और व्यापारिक मामलों में इजराइल का दोस्त बना रहेगा, लेकिन वह फिलिस्तीनियों के हक हकूक नजर अंदाज नहीं करेगा। लेकिन अमेरिका एक ऐसा देश है, जो अब तक हर तरह से इसराइल के पक्ष में खड़ा रहा है।

भविष्य में भी वह इसराइल के साथ होगा, अब इसमें संदेह है। दरअसल इन दोनों  इसराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू जो कर रहे हैं, उससे अमेरिका सहमत नहीं है। यही वजह है कि रमजान के महीने में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में गाजा में युद्ध विराम के लिए पेश किए गए प्रस्ताव पर उसने मतदान से दूरी बना ली। बैठक में 15 में से 14 देशों ने प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया। इससे पहले जब भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में गाजा युद्ध विराम का प्रस्ताव पेश हुआ तो अमेरिका ने वीटो लगाकर प्रस्ताव को निरस्त करवा दिया। हमास और इजरायल युद्ध शुरू होने के बाद से ही अमेरिका यह बात दोहराता रहा है कि  इसराइल मानवाधिकारों की उल्लंघन से हर हालत में बचे, लेकिन पिछले कुछ दिनों से नेतन्याहू जो कर रहे हैं, वह मानवता की पूरी तरह खिलाफ है।

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अहंकार में चूर नेतन्याहू युद्ध कानून का घोर उल्लंघन कर रहे हैं। गाजा भुखमरी के कगार पर है। हजारों बच्चे भूख से दम तोड़ रहे हैं। वही इजरायली सेनाएं भोजन लेने की लाइन में खड़े भूख और अपनी प्यास से बेहाल नागरिकों पर गोलियां बरसा रही है। अस्पतालों और शरणगाहों पर हमला करके उन्हें नेस्तनाबूत कर रही है। पिछले 5-6 महीनों में 30 लाख से अधिक फलस्तीनी बेघर हो चुके हैं। गाजा पट्टी में बहुत बड़ा मानवीय संकट खड़ा हो गया है। अमेरिका के बार-बार मना करने के बावजूद नेतन्याहू बाज नहीं आ रहे हैं। ऐसी स्थिति में अमेरिका के सामने इसराइल को उसके हाल पर छोड़ देने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है।

ऐसी स्थिति में जब इजराइल का सबसे बड़ा समर्थक अमेरिका उसका साथ छोड़ रहा है, तब भारत का क्या रुख होगा, यह समय ही बताएगा। इस मामले में भारत सरकार सिर्फ नेतन्याहू को अमेरिका की तरह सलाह ही दे सकती है। इसराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू भारत की बात पर विचार करेंगे ऐसा कम ही संभव दिख रहा है। भारत अपने रुख में तब्दीली भी नहीं कर सकता है। फलस्तीनियों के अधिकार की अनदेखी करने से जो संदेश पूरी दुनिया में जाएगा, उससे भारत भी अनजान नहीं है। भारत ने हमेशा कमजोर और अपने हक के लिए लड़ने वालों का साथ दिया है। वर्तमान भाजपा सरकार भी ऐसा नहीं करेगी, यह उसने बहुत पहले ही साफ कर दिया था। फिलिस्तीनियों पर हो रहे अत्याचार से भला कोई कैसे आंख मूंद सकता है।

Sanjay Maggu

-संजय मग्गू

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