बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
अपनी मस्ती और सनक के लिए मशहूर डायोजनीज का जन्म 404 ईसा पूर्व यूनान में हुआ था। वह यूनान में निंदकवादी दर्शन के लिए प्रसिद्ध थे। कहा जाता है कि उन्होंने सब कुछ त्याग दिया था। यहां तक कि शरीर पर पहनने वाले वस्त्र भी। सिर्फ एक लंगोट पहनते थे। कहते हैं कि उन्होंने सुकरात की निंदा की, प्लेटो की निंदा की और सिकंदर की भी निंदा की। डायोजनीज के पास एक सुंदर कटोरा था। वह दिन भर उस कटोरे की सुरक्षा के बारे में ही सोचता रहता था। एक दिन वह नदी में पानी पी रहा था, तो उसने कुत्ते को देखा जो पानी पीने के बाद मगन होकर मिट्टी में लोट रहा था। डायोजनीज ने तुरंत कटोरे को फेंक दिया और मस्ती में नदी किनारे लेट गया। एक बार सिकंदर अपने घोड़े पर चढ़कर उसके पास आया और बोला कि मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूं। डायोजनीज ने सिकंदर से कहा कि थोड़ा दूर हटकर खड़े हो जाओ, मेरी धूप हिस्से की धूप रोक रहे हो। सिकंदर ने कहा कि मैं तुम्हारे जैसा बनना चाहता हूं। तब डायोजनीज ने कहा कि यह राजसी वस्त्र त्यागो, घोड़े को स्वतंत्र छोड़ दो और लेट जाओ जमीन पर। यह जमीन हम सबके लिए काफी है। सिकंदर ने कहा कि मैं अभी ऐसा नहीं कर सकता हूं क्योंकि मैं अभी पूरी दुनिया जीतने जा रहा हूं। हां, मैं अगले जन्म में सिकंदर की जगह डायोजनीज बनना पसंद करूंगा। तब डायोजनीज ने कहा कि तुम कभी नहीं कर पाओगे। जो आदमी किसी काम को कल पर छोड़ता है, वह उस काम को कभी नहीं कर पाता है। जो करना है, अभी करो। तुम्हें मस्ती करनी है मेरी तरह, तो सब कुछ छोड़कर इस मिट्टी में लोट जाओ। मेरी ही तरह आनंद उठाओ। विश्व विजय के नाम पर तुम दूसरे के हिस्से की धूप ही रोकोगे। इतना कहकर डायोजनीज ने अपना मुंह फेर लिया।
यूनान का सनकी दार्शनिक डायोजनीज
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