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नवनिर्मित राम मंदिर से दूरी बढ़ाती कांग्रेस

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असमंजस के दौर से गुजर रही कांग्रेस ने अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा से जुड़े पूरे कार्यक्रम को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा का आयोजन बताते हुए किनारा करने का बहाना बनाया है। इसे कांग्रेस राजनीतिक कार्यक्रम करार दे रही है। जबकि महात्मा गांधी से एक पादरी ने पूछा था कि क्या वे राम को भगवान के रूप में अवतार मानते हैं? तब गांधी ने उत्तर दिया, यदि आप भारतीय दर्शन के ज्ञाता हो तो यह समझ जाएंगे कि जीवमात्र परम सत्ता का अवतार ही है। हमारे बीच से जो लोग विभूतियों से संपन्न होते हैं, वे विशेष अवतार हो जाते हैं। इसी अर्थ में राम अवतार हैं और हम उन्हें भगवान मानते हैं। अतएव राम इतिहास पुरुष भी है और दिव्य अवतार भी।

अपने पूर्वजों से सबक लेने की बजाय, कांग्रेस नेता शशि थरूर ने अयोध्या के राम मंदिर उद्घाटन को लेकर नरेंद्र मोदी की आलोचना तो की ही है। 14 फरवरी को अरब अमीरात की राजधानी अबू धाबी में एक हिंदू मंदिर का उद्घाटन नरेंद्र मोदी से कराए जाने की भी निंदा की है। अपने ट्विटर हैंडल पर थरूर ने कहा कि 2024 में भाजपा अपने मूल संदेश पर लौटेगी और मोदी को हिंदू हृदय सम्राट के रूप में पेश करेगी। इसी साल के लोकसभा चुनाव में हिंदुत्व बनाम लोक-कल्याण को वास्तविक मुद्दा बना दिया जाएगा।

खैर, अभिव्यक्ति की आजादी के चलते कोई कुछ भी कहें, इतना तय है कि इस राम-महोत्सव के साथ भारत सांस्कृतिक-आध्यात्मिक राष्ट्रवाद की छाया में आगे बढ़ता दिखाई देगा। सनातन हिंदू संस्कृति ही अखंड भारत की संरचना का वह मूल गुण-धर्म है, जो इसे हजारों साल से एक रूप में पिरोए हुए है। इस एकरूपता को मजबूत करने की दृष्टि से भगवान परशुराम ने मध्य भारत से लेकर अरुणाचल प्रदेश के लोहित कुंड तक आततायियों का सफाया कर अपना फरसा इसी कुंड के जल से धोया था। वहीं राम ने उत्तर से लेकर दक्षिण तक और कृष्ण ने पश्चिम से लेकर पूरब तक सनातन संस्कृति की स्थापना के लिए सामरिक यात्राएं कीं। इन्हीं यात्राओं से भारत का जनमानस सांस्कृतिक रूप से समरस हुआ। इसीलिए समूचे प्राचीन आर्यावर्त में वैदिक और रामायण व महाभारत कालीन संस्कृति के प्रतीक चिन्ह मंदिरों से लेकर विविध भाषाओं के साहित्य में मिलते हैं। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की इन्हीं स्थापनाओं ने दुनिया के गणतंत्रों में भारत को प्राचीनतम गणतंत्र के रूप में स्थापित किया।

मोदी के मंदिरों से जुड़े कायाकल्प केवल धार्मिक नहीं हैं, बल्कि वे अर्थव्यवस्था, आत्मनिर्भरता और स्व-रोजगार के साथ आधुनिक और वैज्ञानिक विकास को भी मजबूत धरातल दे रहे हैं। अयोध्या में साढ़े पांच सौ सालों से आहत सनातन सभ्यता को नई गरिमा मिली है। अयोध्या में सुनहरे क्षितिज का भविष्य लिखते हुए वाल्मीकि हवाईअड्डा बन गया है, जो देश ही नहीं दुनिया में रहने वाले हिंदू धर्मावलंबियों के लिए राम दर्शन की यात्रा आसान करेगा और भारत में विदेशी मुद्रा आएगी।

साथ ही अयोध्या में स्थानीय रोजगारों को बल मिलेगा। वाराणसी, उज्जैन और अन्य धार्मिक पर्यटनों को दृष्टिगत रखते हुए ही दुनिया के सबसे बड़े 1000 विमानों की खरीद के आदेश एयर इंडिया और इंडिगो ने दिए हैं। हवाई यातायात की यह तेज गति विकसित होते भारत की बानगी तो है ही राष्ट्रीय एकता की संवाद-शक्ति भी बन रही है। मोदी सरकार इसी क्रम में केदारनाथ और बदरीनाथ धाम का पुनर्विकास कर रही है।

नरेंद्र मोदी का यह आध्यात्मिक पुनर्जागरण का ऐसा उपाय है, जिससे स्वतंत्रता के बाद के सभी शासक कथित धर्मनिरपेक्षता आहत न हो जाए, इस कारण बचते रहे हैं। जबकि वाकई इन उपायों से ही भारत की संप्रभुता और अखंडता बहाल हुए हैं। जिनका 1400 साल पहले भारत भूमि पर इस्लाम के प्रवेश के बाद दमन होता चला आ रहा था। अब समय का चक्र कुछ विपरीत दिशा में घूमने लगा है।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)

-प्रमोद भार्गव

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