महात्मा बुद्ध ने हमेशा लोगों को प्रतीकों के माध्यम से सन्मार्ग दिखाया। वे हमेशा यह कहा करते थे कि मनुष्य का जीवन मिला है, तो उसका हमेशा सदुपयोग करना चाहिए। एक दिन वह मनुष्य के जीवन की उपयोगिता को लेकर प्रवचन कर रहे थे। प्रवचन खत्म होने के बाद एक व्यक्ति ने उनसे पूछा, भंते! मनुष्य के जीवन का क्या मूल्य है? इसका आकलन कैसे किया जाए? उस व्यक्ति की बात सुनकर महात्मा बुद्ध मुस्कुराए और उन्होंने पास रखा एक पत्थर उठाकर उस आदमी के हाथ पर रखते हुए कहा कि इस पत्थर को लेकर बाजार जाओ और इसका मूल्य पता करके आओ।
लेकिन इसे बेचना नहीं है। वह व्यक्ति उस पत्थर को लेकर एक फल बेचने वाले के पास गया। उसने उस पत्थर को बेचने की इच्छा जताई, तो उस फल वाले ने कहा कि मैं इस पत्थर के बदले एक दर्जन केले दे सकता हूं। वह इसके बाद एक सब्जी विक्रेता के पास गया, तो उसने कहा कि मैं ज्यादा से ज्यादा इस पत्थर के बदले एक बोरी आलू दे सकता हूं। मेरे हिसाब से यही इसका उचित मूल्य है।
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इसके बाद वह आदमी एक सुनार के पास गया, तो उस सुनार ने इस पत्थर की कीमत पचास लाख स्वर्ण रुपये बताई। कुछ देर बातचीत के बाद सुनार ने उस पत्थर की कीमत दो करोड़ रुपये तक लगा दी, लेकिन उस व्यक्ति ने कहा कि मेरे गुरु ने इसे बेचने से मना किया है। इसके बाद वह जौहरी के पास पहुंचा, तो जौहरी ने देखते ही कहा कि इस रूबी की कीमत नहीं लगाई जा सकती है। यह अनमोल है। उस व्यक्ति ने यह बात आकर महात्मा बुद्ध को बताई तो उन्होंने कहा कि यही जीवन का मूल्य है। हर व्यक्ति अपने हिसाब से जीवन का मूल्य तय करेगा। अब मेरा ख्याल है कि तुम जीवन का मूल्य समझ गए होगे। जो जैसा होगा, वैसा ही जीवन का मूल्य तय करेगा।
-अशोक मिश्र
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