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Editorial: महिला सुरक्षा मुद्दे पर रोना नहीं, जागना जरूरी

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देश रोज़ाना: दिल्ली का निर्भया कांड जिसने महिलाओं पर होते जुल्म को देखकर गहरी नींद में सोने वाले संपूर्ण मानव समाज को झटके से जगाया था, वो समाज शायद अब फिर से सोने लगा है। झकझोर देने वाली उस घटना के बाद कुछ वर्षों तक तो लोगों में महिला जागरूकता को लेकर अच्छी खासी चेतनाएं रहीं, लेकिन जैसे-जैसे समय आगे बढ़ा, लोग सब कुछ भूलते चले गए। देखकर दुख होता है, जब भीड़ की मौजूदगी में भी हिंसक प्रवृति के लोग महिलाओं का सरेआम उत्पीड़न करते हैं। लोग तमाशबीन बनकर चुपचाप देखते रहते हैं। उस वक्त थोड़ा सा भी कोई विरोध नहीं करता। विरोध न करना ही, अपराधियों के हौसले बढ़ाना होता है। बीते सात-आठ महीनों में मणिपुर में हुई ऐसी तमाम घटनाएं इस बात का उदाहण हैं। महिलाओं के विरुद्ध बढ़ती हिंसक घटनाओं को रोकने की वकालतें तो पूरा जग-जमाना करता है। पर ये तभी संभव हो पाएगा, जब जनमानस सामूहिक रूप से एकत्र होकर इस काम में आहूति देगा। कड़ाई से मुकाबला करना होगा। लज्जित होने वाली प्रत्येक महिलाओं को हमें अपनी मां-बहन समझना होगा।

हुकूमती व्यवस्था में वूमेन क्राइम पर रोकथाम के लिए कानूनों की कमी नहीं, बहुतेरे कानून हैं। कहने को सामाजिक स्तर पर सजगता-जागरूकता भी बढ़ी है। महिलाओं पर बढ़ती हिंसक घटनाएं किसी भी सूरत में रुके, इसके लिए केंद्र व राज्य सरकारें धन खर्च करने में भी पीछे नहीं हटतीं। बावजूद इसके सभी कोशिशें नाकाफी साबित होती हैं। अगर गौर करे तो ये प्रयास मुकम्मल हो सकते हैं। इसके लिए समाज को गहरी नींद से जागना होगा। चुप्पी तोड़कर दुर्दांत व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठानी होगी।

महिलाओं पर जुल्म ढहाने वाले भेड़िए हमारे इर्द-गिर्द ही मंडराते हैं। उन्हें देखकर कई मर्तबा हम इग्नोर कर देते हैं, जो हमारी सबसे बड़ी भूल होती है। उसी भूल का ही अपराधी फायदा उठाते हैं। ऐसे तत्वों से मुकाबले के लिए अगर समाज एकजुटता हो जाए और उन्हें ललकारना शुरू कर दे, तो किसी की भी हिम्मत महिलाओं पर हिंसा करने की नहीं होगी? अपराधी हिंसा करने से पहले सौ बार सोचेंगे। ऐसा ही एक बेहतरीन उदाहण पंजाब के बठिंड़ा में टांसजेंडर समुदाय ने पेश किया।
कॉलेज के बाहर कुछ शरारती तत्व रोजाना कॉलेज की छात्राओं पर गंदे इशारे करते थे। एक दिन उन्हें पकड़कर ट्रांसजेंडरों ने अच्छी सुताई की और बाद में पुलिस के हवाले कर दिया। ठीक इसी तरह समाज को चेतना होगा।

बहरहाल, तेज गति से फैला वूमेन क्राइम सिर्फ हिंदुस्तान तक ही सीमित नहीं, बल्कि समूचे संसार में विकराल समस्या बन चुका है। पूरे विश्व में महिलाओं के प्रति हिंसा, शोषण एवं उत्पीड़न की घटनाएं बढ़ रही हैं, इन पर अंकुश लगाने और उन्मूलन हेतु ही संयुक्त राष्ट्र ने प्रतिवर्ष 25 नवंबर को अंतर्राष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस मनाने का निर्णय लिया था। मकसद था आधी आबादी के अस्तित्व, अस्मिता एवं उनके योगदान के लिए दायित्वबोध की चेतना का संदेश फैलाना है, जिसमें महिलाओं के प्रति बढ़ रही हिंसा को नियंत्रित करने का संकल्प भी है।

इस बात पर सहमति से इनकार नहीं किया जा सकता कि महिला उत्पीड़न की घटनाओं पर हमें आंख नहीं मूंदनी चाहिए। अगर ऐसा करेंगे तो हो सकता है अगला नंबर हमारे घर की महिलाओं का हो। एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि हिंदुस्तान में प्रतिदिन 246 लड़कियां गायब होती हैं, जिनकी उम्र 14 से लेकर 18 वर्ष के बीच होती है। एनसीआरबी ने अपनी तरफ से 1529 महिला के गायब होने के भी आंकड़े प्रस्तुत किए हैं। प्रतिदिन 87 महिलाओं के साथ बलात्कार होता है। देशभर की बात करें, तो 2022 में 90989 लड़कियां गायब हुई। जबकि, महिलाओं की संख्या 395041 है। ये आंकड़े निश्चित रूप से भयभीत करते हैं। (यह लेखक के निजी विचार हैं।)

– डॉ. रमेश ठाकुर

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