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हाथ और मस्तिष्क ने इंसान को प्रकृति में बनाया बेजोड़

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संपूर्ण प्रकृति में इंसान सबसे खास है। खास क्यों है? इसलिए कि इंसान ने अपने चार पैरों में से आगे के दो पैरों को चलने के काम से मुक्त करके उसे हाथ बना दिया। नतीजा यह हुआ कि धीरे-धीरे उसने दो पैरों से ही चलना सीखा और उसकी रीढ़ सीधी हो गई। इन हाथों के उपयोग ने ही इतनी बेहतरीन दुनिया रच दी। हमारे पूर्वजों ने हाथ से हथौड़ी पकड़ी, छेनी पकड़ी, रस्सी बटना सीखा। उसने जब अपने हाथों का उपयोग रचनात्मक कार्यों में किया, तो उसका मस्तिष्क सक्रिय हुआ। वह अन्य जानवरों से अलग हुआ और एक विकसित मस्तिष्क वाला जानवर यानी इंसान सामने आया। जब तक इंसान हाथों का उपयोग विभिन्न कार्यों में करता रहा, उसके मस्तिष्क का विकास होता रहा। उसकी सोच वैज्ञानिक होती गई। हाथ और मस्तिष्क की सक्रियता और तालमेल ने उसे अंतरिक्ष तक खंगालने की क्षमता प्रदान की। प्रकृति में इंसान के हाथों जैसे हाथ किसी भी अन्य जीवों के नहीं हैं।

हमारे हाथ जितना सटीक वस्तुओं को पकड़ सकते हैं, उतना सटीक दूसरा कोई भी जानवर चीजों को नहीं पकड़ सकता है। इन हाथों की बदौलत ही इंसान ने प्रकृति के खिलाफ संघर्ष किया और खुद बदलने के साथ-साथ प्रकृति को भी बदलने पर मजबूर कर दिया। उसने कुछ ऐसी चीजों का आविष्कार किया जिसने उसके विकास में बहुत बड़ी भूमिका अदा की। जैसे पहिया, दो पत्थरों को आपस में रगड़कर आग पैदा करना, जैसे धातुओं को पिघलाकर मनमाना आकार देना आदि। जबकि प्रकृति के दूसरे जीव प्रकृति के साथ सहयोगात्मक बने रहे। नतीजा प्रकृति ने जो कुछ भी उन्हें प्रदान कर दिया, उससे ही संतुष्ट हो गए।

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यही वजह है कि आज भी हजारों लाखों साल के बाद भी वे वैसे हैं जैसे प्रकृति ने उन्हें पैदा किया था। लेकिन आज पूरी दुनिया की बहुसंख्यक आबादी हाथों का उपयोग कंप्यूटर, मोबाइल, स्कूटी आदि का बटन दबाने में करने लगी है। लोगों ने हाथों का उपयोग अपने पूर्वजों जैसा करना कम कर दिया है। हाथों द्वारा किए जाने वाले जटिल काम छोड़ देने से हमारे मस्तिष्क की सक्रियता पर भी फर्क पड़ना शुरू हो गया है। नार्वे यूनिवर्सिटी आफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी में मनोविज्ञान के प्रोफेसर आंड्रे वैन डेर मीर का कहना है कि मस्तिष्क एक मांसपेशी की तरह है।

अगर हम अपने दैनिक जीवन में जटिल गतिविधियों से दूर होते जाएंगे, तो हमारा मस्तिष्क कमजोर होता जाएगा। दिमागी मांसपेशियां कमजोर होती जाएंगी। तो फिर विकल्प क्या है? हमें अपने हाथों को एक बार फिर पहले की तरह सक्रिय करना होगा। खेती, बागवानी जैसे कामों की ओर एक बार फिर रुख करना होगा। महिलाओं को सिलाई, बुनाई, कढ़ाई जैसे कार्यों में रुचि लेनी होगी। हमें अपने हाथों को एक बार फिर काम देना होगा जिससे हमारे मस्तिष्क की मांसपेशियां सक्रिय हों। हाथों से यदि जटिल काम किए जाएं, तो अवसाद पैदा करने वाले हार्मोन्स भी काबू में रहते हैं। हमारा तनाव कम होता है।

Sanjay Maggu

-संजय मग्गू

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