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प्राण प्रतिष्ठा के बाद राम बजट की तैयारी

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अयोध्या में रामलला के विग्रह की प्राण -प्रतिष्ठा समारोह में विघ्न पड़ने के बाद भी हालांकि प्राण-प्रतिष्ठा समारोह होगा लेकिन इसकी अनुगूंज शायद पूरे देश में न सुनाई दे और इसका हश्र भी नारी शक्ति वंदन विधेयक जैसा हो जाए। इस स्थिति से निबटने के लिए तीसरी बार सत्तारूढ़ होने के लिए लालायित भाजपा ने इस बार ‘राम-बजट’ लाने की तैयारी की है। बजट की तारीख तय हो गई है। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का आखिरी बजट सम्भवत 1 फरवरी पेश होगा। संसद के बजट सेशन के दौरान अंतरिम बजट और आर्थिक सर्वेक्षण पेश होंगे।  सूत्रों के मुताबिक, 1 फरवरी को ही देश का बजट पेश होगा। संसद का बजट सत्र भी 31 से 9 फरवरी तक आयोजित किया जाएगा। 

पूरे देश को रामलला के नए मंदिर की झांकी में उलझकर सरकार ने राम-बजट बनाकर न सिर्फ तैयार कर लिया है बल्कि मंत्रिमंडल की तमाम फ़ौज रामनामी बजट को अंतिम रूप देने में भी लगी हुई है। सरकार इस बार अपने बजट को भी विपक्ष को गैर हाजिर मानकर ध्वनिमत से पारित करने की रणनीति बनाकर आगे बढ़ रही है। उल्लेखनीय है कि संसद के पिछले स्तर में दोनों सदनों के करीब 148  सांसदों के निलंबन के बाद सरकार और विपक्ष के बीच जो अदावत चार्म पर पहुंची थी उसने रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा समारोह के बहिष्कार के बाद नया  रूप ले  लिया  है।

परम्परानुसार राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू संसद के दोनों सदनों को 31 जनवरी को संबोधित करेंगी। इस बार का बजट आम चुनाव से ठीक पहले पेश किया जाना है। इसलिए, इस बार केंद्र सरकार की तरफ से सीतारामी  बजट के बजाय रामनामी बजट बनाया गया है जिसमें कई बड़े ऐलान किये जा सकते है। केंद्र सरकार के सामने इस बार लोकसभा  के चुनाव पिछले आम चुनाव के मुकाबले कुछ ज्यादा ही टेढ़ी खीर साबित होने वाले हैं। इस बार विपक्ष ज्यादा आक्रामक और ज्यादा सनगठित दिखाई दे रहा है। बजट सत्र की वजह से भाजपा के लिए रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा समारोह के जादू को 15  मार्च तक खींचना एक समस्या बन गया है, क्योंकि इस अभियान में अब पार्टी के सांसद ज्यादा समय नहीं दे पाएंगे, जबकि पार्टी ने बूथ स्तर से मतदाताओं को अयोध्या भेजने की कार्ययोजना बनाई गयी है। भाजपा देश कि ४ करोड़ मतदाताओं को अयोध्या ले जाकर रामलला कि दर्शन कराना चाहती है।

बजट पेश होने से एक दिन पहले यानी 31 जनवरी को देश का आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया जाएगा। चीफ इकनॉमिक एडवाइजर और वित्त मंत्रालय से जुड़ी उनकी टीम के जरिए तैयार कराया जाता है। सबसे बड़ी समस्या ये है कि ये बजट दुसरे बजट जैसा नहीं होगा। ये एक तरह का अंतरिम बजट होगा और इसके लिए ‘वोट आन अकाउंट’ की जरूरत पड़ेगी। अंतरिम बजट में चुनावी साल में देश के खर्चे चलाने के लिए सरकार के पास कितना पैसा है और उसका कैसे इस्तेमाल किया जाएगा, इस पर चर्चा होती है और इसे ही वोट ऑन अकाउंट’ कहा जाता है। इसे हासिल करना विपक्ष कि सहयोग कि बिना आसान नहीं होता।

दरअसल मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के खत्म होने के कुछ ही महीने पहले ये बजट काफी महत्वपूर्ण हो जाता है।इस बजट का दो या तीन महीने  बाद होने वाले  लोकसभा चुनाव पर सीधा असर पड़ने वाला है। आम चुनाव से पहले देश की वित्तीय स्थिति को बताने वाला ये बेहद अहम दस्तावेज होता है। परम्परानुसार चुनावी साल में देश में दो बजट पेश होते हैं जिसमें से पहला बजट मौजूदा सरकार प्रस्तुत करती है और दूसरा बजट नई सरकार के गठन के बाद प्रस्तुत किया जाता है। इस चुनाव में यदि भाजपा सत्ता में वापस न लौटी तो सब कुछ उलटा-पुल्टा हो सकता है। भाजपा ने राम नाम कि सहारे दो आम चुनाव जीते हैं,तीसरा चुनाव भी भाजपा राम नाम लेकर ही जीतना चाहती ह। भाजपा को रामनाम पर इतना जयदा भरोसा है की इस बार भाजपा हाईकमान ने 400 पार का नारा दे दिया है, जबकि मौजूदा हालात में भाजपा कि लिए अपनी खुद की 303 सीटें बचना कठिन दिखाई दे रहा है।

आपको याद दिला दूं कि आर्थिक समीक्षा में वित्त वर्ष 2022-23 (अप्रैल 2022 से मार्च 2023) के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था के 8-8.5 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान लगाया गया है। वित्त वर्ष 2020-21 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 7.3 प्रतिशत की गिरावट आई थी ।मजे की बात ये है की इस समय जब केंद्र सरकार संसद में बजट पेश कर रही होगी तब कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष देश में भारत जोड़ो न्याय यात्रा कि जरिये देश की जनता को धर्म कि ज्वार से बाहर निकालकर यथार्थ से वाकिफ करने का प्रयत्न  कर रहा होगा। संसद कि भीतर की कड़वाहट अपनी जगह बरकरार है ही इसलिए मुमकिन है की इस बार बजट की औपचारिकता भर निभाई जाएगी ,क्योंकि सरकार विपक्ष कि साथ सौहार्द बनाने के ‘ मूड ‘में नहीं है। सरकार ने इस बार बजट पूर्व न किसी मंच पर कोई विमर्श किया और न इसकी जरूरत महसूस की ,क्योंकि उसका भरोसा अब देश की जनता, राजनीतिक दलों, व्यापारिक संगठनों के बजाय केवल और केवल राम नाम पर बचा है।भाजपा की केंद्र सरकार के अलावा डबल इंजिन की सरकारों ने भी बीते साल में सरकार का तमाम पैसा धार्मिक स्थलों के विकास के नाम पर खर्च किया है। (यह लेखक के निजी विचार हैं)

-राकेश अचल

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