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रामलला दशावतारों के साथ अयोध्या में प्रकट

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अयोध्या में भगवान राम बालरूप में दशावतारों के साथ प्रगट हो गए हैं। यदि इसे सृष्टि एवं जैविक विकास के क्रम में देखें तो दशावतार की अवधारणा अत्यंत प्रामाणिक है। इस परिप्रेक्ष्य में चार्ल्स डार्विन का 1859 में आया ऑरिजन ऑफ स्पीशीज अर्थात जीवोत्पत्ति का सिद्धांत कहीं नहीं ठहरता। विज्ञान सम्मत दशावतार की परंपरा में पहला मत्स्यातवार हुआ, यानी जल में जीवन की उत्पत्ति हुई। विज्ञान भी इस तथ्य से सहमत है कि जीव-जगत में पहला जीवन रूप पानी में विकसित हुआ। दूसरा अवतार कच्छप हुआ, जो जल और भूमि दोनों स्थलों पर रहने में समर्थ था। तीसरा वराह हुआ, जो पानी के भीतर से जीव के धरती की ओर बढ़ने का संकेत है, अर्थात पृथ्वी को जल से मुक्त करने का प्रतीक है। चौथा नरसिंह अवतार है, जो इस तथ्य का प्रतीक है कि जानवर से मनुष्य विकसित हो रहा है। इसके बाद पांचवां अवतार वामन हुआ, जो मानव का लघु रूप है। सृष्टि के आरंभ में मनुष्य बौने रूप में ही अस्तित्व में आया था। 45 लाख साल पुराने स्त्री और पुरुष के जो जीवाश्म मिले हैं, उनकी ऊंचाई दो से ढाई फीट की है।

वामन के बाद परशुराम हैं, जो मनुष्य का संपूर्ण विकसित रूप हैं। यह अवतार मानव जीवन को व्यवस्थित रूप में बसाने के लिए वनों को काटकर घर-निर्माण की तकनीक को अभिव्यक्त करता है। सातवें अवतार में राम का धनुष बाण लिए प्रकटीकरण इस बात का संकेत है कि मनुष्य मानव बस्तियों की दूर रहकर सुरक्षा करने में सक्षम व दक्ष हो चुका था। आठवें अवतार बलराम हैं, जो कंधे पर हल लिए हुए है। यह स्थिति मानव सभ्यता के बीच कृषि आधारित अर्थव्यवस्था के विकास को इंगित करता है। हालांकि राम की जिस मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा राम मंदिर में की गई हैं, उसमें बलराम के स्थान पर भगवान बुद्ध प्रकट हैं। जो लालच मुक्त दार्शनिक ईश्वर हैं। इनके बाद भगवान कृष्ण हैं, जो मानव सभ्यता के ऐसे प्रतिनिधि हैं, जो नूतन सोच के साथ कर्म का दर्शन देते हैं। दसवां, कल्कि ऐसा काल्पनिक अवतार है, जो भविष्य में होना है। इसे हम कलियुग अर्थात कलपुर्जों के युग से जोड़कर देख सकते हैं।

ब्रिटेन के जेबीएस हाल्डेन नामक शरीर, अनुवांशिकी और विकासवादी जीवविज्ञानी हुए हैं। गणित और सांख्यिकी के भी ये विद्वान थे। हाल्डेन नास्तिक थे, पर मानवतावादी थे। इन्होंने प्रकृति विज्ञान पर भी काम किया है। हाल्डेन को राजनीतिक असहमतियों के चलते ब्रिटेन छोड़कर भारत आना पड़ा था। भारत में वे पहले सांख्यिकीय आयोग के सदस्य बने और प्राध्यापक भी रहे। हाल्डेन ने जब भारत के मंदिरों में जैव व मानव विकास से जुड़ी मूर्तियों का अध्ययन किया, तब उन्होंने पहली बार व्यवस्थित क्रम में अवतारों की बीती सदी के चौथे दशक में व्यख्या की। उन्होंने पहले चार अवतार मत्स्य, कूर्म, वराह और नरसिंह को सतयुग से, इसके बाद के तीन वामन, परशुराम और को त्रेता से और आगामी दो बलराम और कृष्ण को द्वापर युग से जोड़कर कालक्रम निर्धारित किया।

हाल्डेन ने इस क्रम में जैविक विकास के तथ्य पाए और अपनी पुस्तक द कॉजेज आॅफ इव्यूलेशन में इन्हें रेखांकित किया। सृष्टिवाद से जुड़ी तार्किक व्याख्या करने के बाबजूद हाल्डेन की इस अवधारणा को भारतीय विकासवादियों व जीव विज्ञानियों ने कोई महत्व नहीं दिया क्योंकि उनकी आंखों पर पाश्चात्य-वामपंथी वैचारिकता का चश्मा चढ़ा था, दूसरे वे मैकाले की इस धारणा के अंध-अनुयायी थे कि संस्कृत ग्रंथ तो केवल पूजा-पाठ की वस्तु और कपोल-कल्पित हैं। डार्विन के विकास मत का विरोध तो आरंभ से ही होता रहा है। अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने तो यह मत व्यक्त किया है कि जीव या मनुष्य पृथ्वी पर किसी दूसरे लोक या दूसरे ग्रह से आकर बसे। (यह लेखक के निजी विचार हैं।)

-प्रमोद भार्गव

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