संजय मग्गू
गुटबाजी और कलह के चलते हरियाणा चुनाव हार जाने वाले कांग्रेस नेताओं में अभी तक हठधर्मिता बरकरार है। सभी नेता अपने-अपने गुट के साथ अपनी-अपनी ढफली-अपना अपना राग अलाप रहे हैं। हरियाणा विधानसभा चुनावों में हार के बाद यह समझा जाता था कि कांग्रेस नेता अपनी कमियों को दूर करके एकजुट होकर पार्टी को आगे ले जाएंगे। जनता के मुद्दों पर प्रदेश में संघर्ष करेंगे ताकि पांच साल बाद उनके पक्ष में माहौल तैयार हो सके। हार के बावजूद नेताओं में आपसी सामंजस्य कायम नहीं हो सका है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण जिला प्रभारियों की सूची पर हाईकमान की रोक है। दस दिन पहले यानी 18 दिसंबर को हरियाणा प्रदेश कांग्रेस चौधरी उदयभान ने जो सूची प्रभारियों की जारी की थी, उस पर प्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया ने खारिज कर दी है। उनकी शिकायत पर कांग्रेस हाईकमान ने भी सूची पर रोक लगा दी है। दरअसल, पिछले दस साल से अपने हिसाब से कांग्रेस को चलाने वाले पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर अब कांग्रेस हाईकमान ने लगाम कसनी शुरू कर दी है। वह अब हुड्डा को फ्री हैंड देने के मूड में नहीं है। पिछले दस साल में फ्री हैड होने के बावजूद हुड्डा प्रदेश में ठीक-ठाक संगठन त नहीं खड़ा कर पाए हैं। हुड्डा समर्थक माने जाने वाले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष चौधरी उदयभान भी इस मामले में कुछ नहीं कर पाए। उन्होंने जिला प्रभारियों की सूची जारी की, लेकिन उसमें नया कुछ नहीं था। बस, कुछ जिला प्रभारियों को बदल दिया गया, बाकी सूची पुरानी ही रही। विधानसभा चुनाव के दौरान जो जिला प्रभारी बगावत करके चुनाव लड़े या दूसरे दलों में चले गए, उनकी जगह ही नए लोगों को मौका दिया गया। उसमें भी लगभग सभी हुड्डा समर्थक ही थे। नई सूची में रणदीप सिंह सुरजेवाला, कुमारी सैलजा और पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह ने भी आपत्ति जताई थी क्योंकि नई सूची में उनके समर्थकों को शामिल ही नहीं किया गया था। प्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया ने सूची को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि इस बारे में उनसे कोई सलाह मशविरा ही नहीं किया गया था। अब मामले की गेंद कांग्रेस हाईकमान के पाले में है। कांग्रेस हाईकमान कब फैसला लेगा, इसके बारे में कोई कुछ नहीं कह सकता है। विधानसभा चुनाव परिणाम आए हुए, इतने दिन बीत गए, लेकिन अभी तक विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष कौन होगा, इसका भी फैसला नहीं हो पाया है। पहले यह कहा गया कि पूरी कांग्रेस महाराष्ट्र और झारखंड चुनाव में व्यस्त है, इसलिए अभी तक फैसला नहीं हो पाया है। दोनों राज्यों के चुनाव परिणाम आए हुए भी एक महीने से ज्यादा बीत गया है, लेकिन अभी तक इस मामले में कुछ हुआ नहीं। ऐसी स्थिति में प्रदेश में कांग्रेस संगठन कैसे खड़ा होगा, यह सवाल अनुत्तरित है।
गुटबाजी और कलह के बीच कैसे खड़ा होगा कांग्रेस संगठन?
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