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Editorial: सांस्कृतिक उदय से अंत्योदय की राह पर उत्तर प्रदेश

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देश रोज़ाना: भारत के सांस्कृतिक इतिहास के तमाम दौर में एक केंद्रीयता की स्थिति जिस प्रदेश की रही है, वह निस्संदेह उत्तर प्रदेश है। देश के इस सबसे बड़े सूबे के इतिहास से ज्ञात होता है कि यहां हमेशा से ही एक समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा रही है। शिक्षा, कला, संगीत, साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में यहां के शिक्षाविदों एवं कलाकारों ने पूरे देश में ही नहीं, अपितु वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बनाई है। राम और कृष्ण की जन्मभूमि रहे इस प्रदेश की संस्कृति एवं विरासत अपने आप में अनूठी है। 12 जनवरी 1950 को स्थापित उत्तर प्रदेश की जनसंख्या आज 24 करोड़ के आसपास है। इस प्रदेश की देश की राजनीति में महत्वपूर्ण दखल है। देश को अनेक नामचीन हस्तियां और नेतृत्व देने वाला उत्तर प्रदेश एक लंबे कालखंड तक स्वयं राजनीति और नौकरशाही के मकड़जाल में फंस कर रहा गया था।

देश की आजादी के बाद के कालखंड का इतिहास साक्षी है कि एक बड़े कालखंड तक गरीबी उन्मूलन के स्थान पर गरीबी हटाओ जैसे राजनीतिक नारों की प्रथा जारी रही। पूर्ववर्ती सरकारों की ऐसी शासन व्यवस्था से देश व प्रदेश को निराशा और असंतुष्टि की ओर ले गई। 2017 के बाद प्रदेश का नारा राजनीति को विकास द्वारा, विकास के लिए और विकास के जरिए एक उपकरण बनकर सामने आया और विकास की एक नई राजनीति ने जन्म लिया। प्रधानमंत्री मोदी ने सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास के लक्ष्य और विजन से जन-जन के जीवन में विकास और सहभागिता के माध्यम से सकारात्मक बदलाव लाने वाली नई व्यवस्था ने जन्म लिया।

मोदी सरकार की इस दूरदर्शी एवं वैकास दृष्टि से प्रेरणा लेकर योगी सरकार ने भी राज्य के सर्वांगीण विकास हेतु एक समग्र योजना और इसके क्रियान्वयन की एक कठोर व्यवस्था से जुड़ी रणनीति तैयार की। योगी आदित्यनाथ स्वयं एक सांस्कृतिक व्यक्ति हैं। उन्होंने पूर्व में भी गौरक्षापीठ द्वारा सांस्कृतिक गतिविधियों का संचालन किया है। यही कारण रहा है कि उन्होंने भाजपा के संविधान में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को भी प्रमुखता से व्यावहारित किया है। इस दृष्टि से सरकार बनते ही उन्होंने अवैध पशुवध कारखाने बंद करने की घोषणा की। उन्होंने साफतौर पर देखा कि ये कारखाने पशुधन को ही नष्ट नहीं कर रहे, बल्कि सामाजिक समरसता में भी विष घोल रहे हैं।

प्रदेश के सांस्कृतिक उदय के माध्यम से ही योगी ने प्रदेश में विभिन्न स्थानों पर धार्मिक और आध्यात्मिक सर्किट का निर्माण कर अंत्योदय की संकल्पना को साकार किया है। जनसंघ के संस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने राजनीति को समाज की कतार में खड़े अंतिम व्यक्ति के उत्थान के एक साधन के रूप में देखा था। अंत्योदय एक कल्याणकारी राज्य का निर्माण करता है। अंत्योदय की इसी भावना को मूर्तरूप देने के लिए दूसरे कार्यकाल में योगी सरकार ने विकास की प्राथमिकता के साथ ही दलितों, शोषितों और वंचितों के उत्थान के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया है। उन्होंने इसके लिए दिन-प्रतिदिन नई योजनाओं का सृजन भी किया है। 15 करोड़ से अधिक अंत्योदय और पात्र लोगों को नि:शुल्क खाद्य सामग्री वितरण कराने जैसी योजनाओं का क्रियान्वयन उत्तर प्रदेश सरकार ने पूर्णता के साथ लागू किया।

प्रदेश सरकार द्वारा आज 50 से भी अधिक योजनाएं प्रदेश के हितार्थ लागू हैं। इनमें स्वच्छ भारत मिशन के अन्तर्गत 2.61 करोड़ शौचालयों के निर्माण से 10 करोड़ लोग लाभान्वित हुए। ाज उत्तर प्रदेश सरकार जिस गति से पंड़ित दीनदयाल उपाध्याय जी की अंत्योदय की भावना को प्रदेश की राजनीति और विकास में समाहित कर रही है, उससे प्रदेश के कमजोर,गरीब और पिछड़े वर्गों में एक नई आशा का संचार हुआ है। उससे अब उन्हें लग रहा है कि पुराना उत्तर प्रदेश अब एक सुरक्षित, नूतन और उत्तम प्रदेश बनने की ओर अग्रसर हो रहा है। (यह लेखक के निजी विचार हैं।)

– डॉ. विशेष गुप्ता

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