पहले जर्मनी और फिर दो बार अमेरिका के बाद अब संयुक्त राष्ट्र की भारत के आंतरिक मामलों में की गई टिप्पणी के राजनीतिक मायने निकालने की कोशिश की जा रही है। इन देशों और संयुक्त राष्ट्र की टिप्पणी के बाद क्या यह मान लिया जाए कि भारत का रुतबा कमजोर पड़ता जा रहा है? पीएम मोदी का आभा मंडल दरक रहा है? दुनिया के किसी भी देश में होने वाले सम्मेलनों और गोष्ठियों में पीएम मोदी, अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन और जर्मन संघीय गणराज्य की चांसलर डॉ. एंजेला मर्केल से जिस आत्मीयता से मुलाकात करते रहे हैं उससे अब भारत के आंतरिक मामलों को लेकर दिए जा रहे बयान आश्चर्यचकित ही करते हैं।
पिछले दस वर्षों में पीएम मोदी ने जो छवि देश की गढ़ी है, उसको लेकर भाजपा के नेता और केंद्र सरकार के मंत्री यह दावा करने से नहीं चूकते थे कि पूरी दुनिया में मोदी जी का डंका बज रहा है। भारत विश्वगुरु बनने वाला है। लेकिन दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस पार्टी के बैंक खातों को फ्रीज किए जाने का मामला जिस तरह राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय जगत में बहस का मुद्दा बनता जा रहा है, उससे यह आशंका भी बलवती होती है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस मामले को तूल देना किसी सुनियोजित प्रयास का हिस्सा तो नहीं है।
भारत के पूर्व विदेश सचिव और तुर्की, फ्रांस और रूस जैसे कई देशों में राजदूत रह चुके कंवल सिब्बल तो इस मामले को इसी नजरिये से देखते हैं। उनका कहना है कि क्या केजरीवाल को मिल रहा यह बाहरी समर्थन कुछ कहता है? संयुक्त राष्ट्र चार्टर सदस्य देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप पर रोक लगाता है, लेकिन यूएनएसजी का ऑफिस खुद इसका उल्लंघन कर रहा है। यूएन किसी भी मामले में अपनी सारी विश्वसनीयता खो चुका है। वहीं, ईडी द्वारा की गई अपनी गिरफ्तारी को अरविंद केजरीवाल और बैंक खातों को फ्रीज करने के मामले को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी ने मीडिया के सामने अपने को पीड़ित के रूप में प्रकट करके अपने पक्ष में सहानुभूति पैदा करने की कोशिश की है।
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जहां तक सुनियोजित तरीके से मुद्दा उठाने की बात है, इन दिनों किसी भी देश में क्या चल रहा है, इसको कोई नहीं छिपा सकता है। अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस नेताओं ने तो खुलेआम मीडिया के सामने केंद्र सरकार को घेरने का प्रयास किया है। आज ही इनकम टैक्स विभाग ने कांग्रेस को 1700 करोड़ रुपए का नया डिमांड नोटिस जारी किया है। यह डिमांड नोटिस 2017-18 से 2020-21 के लिए है। इसमें जुमार्ने के साथ ब्याज भी शामिल हैं। जो कांग्रेस पहले ही यह कह चुकी है कि उसके पास तो चुनाव लड़ने का पैसा तक नहीं बचा है, वह 1700 करोड़ रुपये का जुमार्ना कहां से भरेगी?
जाहिर सी बात है, वह जहां भी मौका मिलेगा, वह सरकार के खिलाफ रोना रोएगी। ऐसी स्थिति में कोई भी कांग्रेस और अरविंद केजरीवाल को लेकर द्रवित हो सकता है, लेकिन राजनयिक स्तर पर दुनिया के हर देश को प्रतिक्रिया व्यक्त करने से बचना चाहिए। यह देश के आंतरिक मामलों में दखलंदाजी है। इसे कोई बर्दाश्त नहीं करेगा। ऐसी स्थिति में हर ऐरा गैरा नत्थू खैरा देश कुछ भी बकने लगेगा। यह स्थिति किसी भी देश को असहज कर सकती है। इसे कोई भी देश बर्दाश्त नहीं करेगा। भारत को भी नहीं करना चाहिए।
-संजय मग्गू
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