इसीलिए कहा जाता है कि जब भी बोलो, सोच समझकर बोलो। कबीरदास तो कई सौ साल पहले ही बता गए हैं कि बानी एक अमोल है जो कोई बोलै जानि, हियै तराजू तौलिके तब मुख बाहर आनि। बस यही गलती संजय मांजरेकर कर गए। बिना समझे-बूझे उन्होंने एक शब्द कार्यक्रम के दौरान बोले और नतीजा यह हुआ कि उनकी सोशल मीडिया लेकर आम चर्चा में उनकी भद्द पीटी जा रही है। बात पिछले सोमवार को आईपीएल मैच के दौरान राजस्थान रॉयल्स और रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरू के टॉस से पहले की है। राजस्थान रॉयल्स के कर्ताधर्ताओं ने एक कार्यक्रम शुरू किया है। राजस्थान रॉयल्स ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं की सशक्तिकरण के लिए एक प्रोत्साहन कार्यक्रम शुरूकरने जा रही है। इस कार्यक्रम के तहत वे महिलाओं से जुड़े कार्यक्रमों के लिए आर्थिक सहायता देंगे। उन्हें प्रोत्साहन देंगे।
ग्रामीण इलाके को सूरज की ऊर्जा से रोशन करने के लिए मदद देंगे। इसे उन्होंने ‘पिंक प्रॉमिस’ कहा है। यह योजना तो बहुत अच्छी है। पूर्व क्रिकेटर संजय मांजरेकर खेल शुरू होने से पहले इसके बारे में खचाखच भरे स्टेडियम में मौजूद लोगों और टीवी चैनल्स पर मैच देखने को उत्सुक करोड़ों दर्शकों को पिंक प्रामिस के बारे में बता रहे थे। जब वह अपनी बात कह चुके तो उनके मुंह से निकला कि अब सीरियस बिजनेस की बात की जाए। बस, यही गलती कर बैठे संजय मांजरेकर। सीरियस बिजनेस की बात कहकर उन्होंने यह साबित कर दिया कि महिलाओं से जुड़े मुद्दे उनके लिए सीरियस नहीं लगते। दरअसल, यह संजय मांजरेकर की ही मानसिकता नहीं है, यह पितृसत्तात्मक व्यवस्था के हिमायती लगभग हर पुरुष की यही सोच है, मानसिकता है। महिलाओं के मुद्दे तो उन्हें गंभीर लगते ही नहीं है।
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देश के लगभग पचास-साठ फीसदी घरों में बोलचाल के दौरान कहा ही जाता है कि यार! महिलाओं की बातों को गंभीरता से मत लिया करो। क्या करें, महिलाओं को गंभीरता से न लेना, जैसे हमारे खून में घुलमिल गया है। महिलाओं की बातों, उनकी समस्याओं को हवा में उड़ा देने की आदत हमारे पुरखों ने तो पैदा होते ही डालनी शुरू कर दी थी। वे खुद महिलाओं को कोई तवज्जो नहीं देते थे और जाने-अनजाने हमें भी वही सिखाते थे।
‘मर्द को दर्द नहीं होता’ वाली मानसिकता ने हमें भी यही सिखा दिया कि महिलाएं, उनकी पीड़ा, उनका दर्द हमारे लिए उतना मायने नहीं रखते जितना हमारे सुख-दुख मायने रखते हैं। अब संजय मांजरेकर महिलाओं के निशाने पर हैं, अपने को उदारमना मानने वाले पुरुषों की आंखों में गड़ रहे हैं। अब पूछा जा रहा है कि क्रिकेट खेलना गंभीर बिजनेस कब से हो गया है? वैसे राजस्थान रॉयल्स का यह फैसला बहुत ही सराहनीय है। राजस्थान जैसे राज्य में महिलाओं के लिए बहुत कुछ किया जा सकता है और किया भी जाना चाहिए। लेकिन लापरवाही से कहे गए एक शब्द ने चर्चा का बिंदु ही बदलकर रख दिया।
-संजय मग्गू
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