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इंटरनेट का अधिक उपयोग कमजोर कर रहा बच्चों का दिमाग

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इन दिनों पूरी दुनिया में सोशल मीडिया और इंटरनेट के ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल ने बच्चों को दिमागी रूप से कमजोर करना शुरू कर दिया है। बच्चे ब्रेन रोट जैसी स्थिति में पहुंच रहे हैं। ब्रेन रोट यानी डिजिटल मीडिया के ज्यादा इस्तेमाल से सोचने-समझने की क्षमता में कमी। इंटरनेट से जुड़ी समस्याओं के एक्सपर्ट बार-बार यह चेतावनी दे रहे हैं कि बच्चों को जैसे भी हो सके, इंटरनेट और सोशल मीडिया से दूर रखा जाए। लेकिन लोग हैं कि बाज आने को तैयार नहीं हैं। घरों में बच्चों को मोबाइल पकड़ा दिया जाता है ताकि वे उसमें उलझे रहें और उनके मां-बाप या अन्य परिजन अपना काम निबटा सकें। जो बच्चे ठीक से बोल नहीं पाते हैं, उन्हें भी मोबाइल थमाकर लोग सुकून महसूस करते हैं।

बच्चे जब मोबाइल पर फिल्म, शार्ट वीडियो या अन्य कुछ देखते हैं, तो उसकी चमक-दमक, बड़ी जल्दी जल्दी चित्र के फ्रेम बदलने से वे आश्चर्यचकित होते हैं। वे इससे पहले कि चित्र के मायने मतलब समझ सकें, चित्र बदल जाता है। इस तरह वे चित्र दर चित्र देखते जाते हैं, लेकिन उनमें तारतम्य नहीं बिठा पाते हैं। धीरे-धीरे यह एक बीमारी का रूप ले लेती है जिसे ब्रेन रोट कहते हैं। सच तो यह है कि वयस्क हों या बच्चे, जब इंटरनेट पर ज्यादा से ज्यादा समय बिताने लगते हैं, तो हम एक तो वास्तविक दुनिया से कट जाते हैं, दूसरे हम इंटरनेट की आभासी दुनिया को ही वास्तविक समझने लगते हैं। धीरे-धीरे सामान्य बातचीत में भी इंटरनेट के शब्दों का उपयोग करने लगते हैं। फोन स्क्राल करने की आदत दिलोदिमाग में इतने गहरे बैठ जाती है कि वास्तविक दुनिया अच्छी ही नहीं लगती है।

सोशल मीडिया की बातें इतने गहरे दिमाग में पैठ जाती है कि उनका अपने ही दिमाग पर नियंत्रण खत्म हो जाता है। यह दृश्य इन दिनों आमतौर पर देखने को मिलता है कि किसी छोटे बच्चे को मोबाइल स्क्राल करना आ गया हो तो उसके हाथ से मोबाइल छीनकर देखिए। वह तुरंत रोने लगेगा। उसे मोबाइल पकड़ा दीजिए, तो वह चुप हो जाएगा। यह स्थिति सिर्फ बच्चों की है, ऐसा नहीं है। इसके आदी तो वयस्क लोग भी हैं। बच्चों का मन पढ़ाई-लिखाई में नहीं लगता है, तो वयस्कों का मन अपने काम में नहीं लगता है। यदि वह काम कर रहे होते हैं, तो उनका मन सोशल मीडिया में ही लगा रहता है। आज जब इलेक्ट्रानिक वस्तुओं का प्रयोग बढ़ रहा है,

इंटरनेट जीवन के हर क्षेत्र में प्रवेश कर रहा है, ऐसी स्थिति में इस पर रोक लगाना संभव नहीं है। यदि ऐसी स्थिति में रोक लगाई जाती है, तो बच्चे चोरी-छिपे इंटरनेट पर सर्फिंग करेंगे। ऐसी स्थिति में किसी किस्म का प्रतिबंध लगाने से बेहतर है कि उनकी समय सीमा को घटाया जाए। इंटरनेट का सकारात्मक उपयोग किस तरह किया जाए, यह बच्चों को सिखाने की जरूरत है। जब बच्चा नेट का सकारात्मक उपयोग सीख जाएगा, तो नकारात्मक उपयोग अपने आप घट जाएगा। इससे ब्रेन रोट की समस्या से भी निजात मिलेगी। दस बारह साल की उम्र तक बच्चों को यदि मोबाइल से दूर रखने में सफलता मिल जाए, तो यकीनन किशोरों को मोबाइल का सदुपयोग सिखाया जा सकता है।

-संजय मग्गू

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