क्या निकट भविष्य में मानव सभ्यता मिट जाएगी? इस सवाल के दो जवाब हैं। वह हैं हां और न। कुछ लोग मानते हैं कि यदि दो सौ-तीन सौ साल बात ऐसी परिस्थितियां पैदा हुईं, तब तक मनुष्य इतनी वैज्ञानिक क्षमता पैदा कर लेगा कि वह दूसरे ग्रहों या उपग्रहों पर जाकर बस जाए। ऐसे लोगों का मानना है कि दस बीस या सौ करोड़ बाद पृथ्वी नष्ट हो सकती है, लेकिन मानव सभ्यता नहीं। यह इन लोगों का प्रबल आशावाद है। लेकिन ज्यादातर जलवायु वैज्ञानिकों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण पृथ्वी पर लगातार परिस्थितियां मानव जीवन के प्रतिकूल होती जा रही हैं।
पिछली एक-डेढ़ सदी में पृथ्वी का तापमान 1.1 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ चुका है। यदि अगले पच्चीस-तीस सालों में इस बढ़े तापमान को डेढ़ डिग्री पर स्थिर नहीं किया गया, तो एक बहुत बड़ी आबादी अकाल मृत्यु को प्राप्त होगी। इसका यह मतलब नहीं है कि वे गर्मी से मर जाएंगे। ग्लोबल वार्मिंग के चलते अनाज की घटती उत्पादकता, रोजी-रोजगार की तलाश में लोगों का एक जगह से दूसरी जगह का विस्थापन, गंभीर बीमारियों का प्रसार आदि ऐसे महत्वपूर्ण कारक लोगों की मौत के लिए जिम्मेदार होंगे। जलवायु वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि हमें ऐसी स्थिति से बचना है, वर्ष 2100 तक बढ़ते तापमान को डेढ़ डिग्री सेल्सियस पर ही स्थिर करना होगा।
कार्बन डाईआक्साइड के उत्सर्जन को न्यूनतम से न्यूनतम करना होगा। स्वतंत्र क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर ग्रुप की वर्ष 2021 की वार्षिक रिपोर्ट बताती है कि पूरी दुनिया 2.4 डिग्री सेल्सियस तक तापमान बढ़ोतरी की ओर बढ़ रही है। यदि ग्लोबल वार्मिंग दो डिग्री सेल्सियस तक भी पहुंच गई, तो लोगों को ग्लोबल वार्मिंग के सबसे बुरे परिणामों को भोगने से कोई नहीं बचा सकता है। इसके बुरे परिणाम अभी से दिखाई देने लगे हैं। पिछले पांच साल से दक्षिण अफ्रीका में लगातार बारिश नहीं हुई है।
संयुक्त राष्ट्र के विश्व खाद्य संगठन का कहना है कि इसके चलते 2.2 लोगों के सामने भूखे मरने तक की नौबत आ गई है। यदि यही हालात रहे, तो पूरी पृथ्वी से इस सदी के अंत तक पांच सौ से ज्यादा प्रजातियां खत्म हो जाएंगी। यूएस नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन द्वारा अप्रैल 2022 में प्रकाशित शोध बताता है कि समुद्र में रहने वाली दस से बीस प्रतिशत समुद्री जीवों के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। लगातर गर्मी बढ़ने से उपजाऊ खेत बंजर में तब्दील हो रहे हैं।
बाद में यही बंजर खेत रेगिस्तान का रूप धारण कर ले रहे हैं। लेकिन यदि वर्ष 2015 में जलवायु को लेकर किए गए पेरिस समझौते पर अमल न किया गया, तो जलवायु परिवर्तन की वजह से पृथ्वी पर संकट बढ़ता जाएगा। एक दिन ऐसा भी आ सकता है कि करोड़ों लोग जलवायु परिवर्तन की भेंट चढ़ जाएं। इसके बावजूद विकसित देश इन परिस्थितियों को लेकर गंभीर नहीं हैं। सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जित करने वाले विकसित देश कार्बन उत्सर्जन रोकने की दिशा में पहल नहीं करना चाहते हैं क्योंकि इसके लिए एक भारी-भरकम रकम खर्च करनी पड़ेगी।
संजय मग्गू