जीवन और मृत्यु यही दोनों दुनिया में शाश्वत हैं। जो पैदा हुआ है, उसकी मृत्यु निश्चित है। जो भी दृश्यमान वस्तु है, वह एक दिन मिट जाएगी, यह जीवन की क्षणभंगुरता है। पूरी पृथ्वी एक दिन मिट जाएगी, हमारा सौर मंडल एक दिन खत्म हो जाएगा, हमारे जीवन के मुकाबले भले ही इसमें अरबों, खरबों साल लगेंगे, लेकिन यह सत्य है कि एक दिन इसका विनाश होना तय है। यह भी सत्य है कि किसी के मर जाने पर उसका परिवार, उसके आत्मीय अपने प्राण नहीं दे देते हैं। हां, एकाध लोग इसके अपवाद जरूर हो सकते हैं।
एक गांव में एक महात्मा ने प्रवचन देते हुए कहा कि आदमी को आत्मकल्याण पर ध्यान देना चाहिए। जब तक व्यक्ति आत्मकल्याण की ओर ध्यान नहीं देता है, तब तक उसे शांति नहीं मिलती है। यही मनुष्य के जीवन का सच्चा लक्ष्य है। संत का प्रवचन एक युवक सुन रहा था। वह संत के पास पहुंचा और उसने कहा कि मैं आत्म कल्याण के लिए वैराग्य धारण करना चाहता हूं, लेकिन यदि मैं ऐसा करता हूं, तो मेरा परिवार मेरे वियोग में मर जाएगा।
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संत ने कहा कि ऐसा कुछ नहीं होगा। युवक नहीं माना, तो संत ने कहा कि चलो परीक्षण कर लेते हैं। संत ने युवक को अपने पास रखकर सांस रोकने की क्रिया सिखाई। जब युवक इसमें सिद्ध हो गया, तो एक दिन युवक को अपने घर पर जाकर सांस रोकर लेटने को कहा। युवक ने सांस रोक ली। पूरा परिवार रोने लगा। वैद्यों ने आकर जांच की, लेकिन वे भी जान नहीं पाए। तभी वहां संत ने आकर कहा कि वह इस युवक को जीवित कर सकते हैं, लेकिन उसके बदले किसी को मरना होगा। इसके लिए मां, बाप, पत्नी, भाई-बहन कोई तैयार नहीं हुआ। अब युवक की समझ में आ गया कि कोई किसी के मर जाने पर मरता नहीं है। उसने उसी क्षण वैराग्य धारण कर लिया।
-अशोक मिश्र
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