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Nithari kand: निठारी कांड के अदालती निर्णय पर गूंजते सवाल

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देश रोज़ाना: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश के नोएडा के चर्चित निठारी कांड के 12 केस के आरोपी सुरेंद्र कोली और दो केस में फंसी की सजा पाए कोठी डी-5 के मालिक मनिंदर सिंह पंढेर को भी ने बरी कर दिया है। शायद यह ऐतिहासिक होगा कि एक साथ 12 मामलों में फंसी के आरोपी को बरी किया गया हो। न्यायालय ने इन्हेंं दोष मुक्त तो करार दे दिया। किंतु ये न्याय एक तरफा है। अधूरा है। निठारी कांड तो हुआ है। चर्चित निठारी कांड में निचली अदालत से कोली को एक दर्जन से अधिक मामलों में फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है। निठारी गांव के कोठी डी-5 के मालिक मनिंदर सिंह पंढेर को दो केस में फांसी की सजा हो चुकी है। अब जबकि ये निचली अदालत से फांसी की सजा पाए ये दोनों आरोपी हाईकोर्ट ने बरी कर दिए तो व्यवस्था को यह तो बताना ही होगा कि फिर इस कांड के आरोपी कौन हैं? किसने इस कांड की 19 घटनाओं को अंजाम दिया। कांड तो हुआ ही है। ये दोनों आरोपी इसलिए बरी हो गए कि इनके विरुद्ध सुबूत नहीं थे। किंतु पीड़ित परिवारों को भी तो न्याय चाहिए। उनके परिवार की युवतियों, बेटियों, बच्चों पर जुल्म करने वाला, उनसे व्यभिचार कर उन्हें काटकर खाने वाला कोई तो होगा? किसी ने तो ये कांड किया होगा? उसे कानून की जद में लाकर सजा कौन दिलाएगा? ये निर्दोष थे तो फिर इनकी कोठी के पास नाले में किसने मारकर युवतियों को डाला?

इस मामले में कई दिनों तक चली बहस के बाद सोमवार को हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। कोर्ट ने सुरेंद्र कोली को दोषमुक्त कर दिया। निचली अदालत ने उसे फांसी की सजा सुनाई थी। इसके खिलाफ उसने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। कोठी डी-5 के मालिक मनिंदर सिंह पंढेर को भी कोर्ट ने बरी कर दिया है। न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति एसएएच रिजवी की अदालत ने यह फैसला सुनाया। कोली पर आरोप है कि वह पंढेर कोठी का केयरटेकर था और लड़कियों को लालच देकर कोठी में लाता था। निठारी गांव की दर्जनों लड़कियों गायब हो गईं। वह उनसे दुष्कर्म कर हत्या कर देता था। लाश के टुकड़े कर बाहर फेंक आता था।
29 दिसंबर 2006 को नोएडा में मोनिंदर सिंह पंढेर के घर के पीछे नाले से 19 बच्चों और महिलाओं के कंकाल मिले। मोनिंदर सिंह पंढेर और सुरेंद्र कोली गिरफ्तार हुआ। आठ फरवरी 2007 को कोली और पंढेर को 14 दिन की सीबीआई हिरासत में भेजा गया। मई 2007 को सीबीआई ने पंढेर को अपनी चार्जशीट में अपहरण, दुष्कर्म और हत्या के मामले में आरोपमुक्त कर दिया था। दो माह बाद अदालत की फटकार के बाद सीबीआई ने उसे मामले में सहअभियुक्त बनाया। 13 फरवरी 2009 को विशेष अदालत ने पंढेर और कोली को 15 वर्षीय किशोरी के अपहरण, दुष्कर्म और हत्या का दोषी करार देते हुए मौत की सजा सुनाई। ये पहला फैसला था। इसके बाद 11 केस में दोनों को सजा हुई।

पुलिस ने इस मामले में कहा था कि कम से कम 19 युवा महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया था, उनकी हत्या कर दी गई थी और उनके शवों के टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए थे। पुलिस ने उस समय कहा था कि ये हत्याएं पंढेर के घर के अंदर हुई थीं, जहां कोली नौकर के तौर पर काम करता था। पुलिस ने आरोप लगाया कि जिन बच्चों के अवशेष बैग में छिपे हुए पाए गए थे, उन्हें कोली ने मिठाई और चॉकलेट देकर लालच देकर मार डाला था। पुलिस का कहना था कि जांच के दौरान कोली ने नरभक्षण और नेक्रोफिलिया (शवों के साथ संबंध बनाने) की बात कबूल की थी। बाद में उन्होंने अदालत में अपना कबूलनामा ये कहते हुए वापस ले लिया कि उनसे जबरन ये बयान दिलवाया गया था। सीबीआई ने सुरेंदर कोली और पंढेर के खिलाफ 19 मामले दर्ज किए थे।

एक बात और हाईकोर्ट ने कहा कि शवों की मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर जांच नही हुई।ये रिपोर्ट मानव तस्करी की और इशारा कर रही थी।दोनों न्यायधीश ने जांच पर नाखुशी जताते हुए ये भी कहा कि जांच बेहद खराब है। सुबूत जुटाने की मौलिक प्रक्रिया का पूरी तरह उल्लंघन किया गया। जांच एसेंसियों की नाकामी जनता के विश्वास के साथ धोखा है। हाईकोर्ट ने कहा कि जांच एजेंसियों ने अंग व्यापार के गंभीर पहलुओं की जांच किए बिना एक गरीब नौकर को खलनायक की तरह पेश किया। हाईकोर्ट ने माना कि ऐसी गंभीर चूक के कारण मिलीभगत सहित कई गंभीर निष्कर्ष संभव है। हाईकोर्ट ने यह भी माना कि आरोपी अपील कर्ता को निचली अदालत में स्पष्ट रूप से निचली अदालत में सुनवाई का मौका नही मिला। न्यायालय ने निर्णय में ये भी कहा कि दोनों आरोपियों के खिलाफ कोई सुबूत नही हैं।सुबूत के अभाव में दोनों आरोपियों को लगभग 17 साल जेल में रहना पड़ा।अकारण जेल में बिताए इनके इन सालों के लिए कौन जिम्मेदार है?

इस केस में शुरूआत से ही पुलिस पर आरोप लगते रहते हैं कि वह इस मामले में रूचि नही ले रही।उसीके बाद मामला सीबीआई को गया। अब सीबीआई की जांच पर भी सवाल उठा है तो सीबीआई को अपनी जांच और प्रक्रिया पर भी सोचना और बदलाव करना होगा। क्योंकि देश में उसका बहुत सम्मान है। प्रत्येक प्रकार के टिपिकल मामले में उसी से जांच कराने की बात आती है। अब उसकी भी जांच ऐसी ही निम्न स्तरीय होगी,तो फिर उसे सोचना तो होगा ही। (यह लेखक के निजी विचार हैं।)

– अशोक मधुप

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