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साधु बोला, तुम मुझे अपना अहंकार दे दो

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अहंकार किसी भी व्यक्ति के चरित्र का विनाश करता है। अहंकारी व्यक्ति कभी समाज में सम्मान नहीं पाता है। लोग उसे अच्छा आदमी नहीं समझते हैं। अहंकारी व्यक्ति की धन-संपत्ति का बहुत जल्दी नाश हो जाता है। वह अपने पुरखों की संचित संपदा को गंवा देता है। व्यक्ति को आमतौर पर अपनी धन संपदा, अपने सौंदर्य को लेकर अहंकार होता है, लेकिन यह सब किसी के पास स्थायी नहीं रहते हैं। एक राजा था। उसको अपने राजकोष पर बहुत अभिमान था। उसने प्रजा पर कई तरह के कर लगाकर राजकोष को भरा था। उसने कई खूबसूरत महल भी बनवाए थे।

वह हमेशा अपनी धन संपदाको बढ़ाने की कोशिश में ही लगा रहता था। एक दिन की बात है। एक साधु उधर से गुजर रहा था। उसने सोचा कि चलो, राजा से मिल लेते हैं। साधु राजा के दरबार में पहुंचा, तो राजा ने उसका बहुत आदर सत्कार किया। रात में उसने साधु से राजमहल में ही रुकने का अनुरोध किया। राजा की बातचीत से साधु समझ गया कि राजा को अपनी धन संपदा को लेकर अहंकार है। अगले दिन जब साधु विदा होने लगा, तो उसने राजा से कहा कि तुम मुझे कुछ उपहार दो। राजा ने कहा कि जो कुछ भी मेरे राजकोष में है, वह आप ले सकते हैं।

इस पर साधु ने कहा कि राजकोष तो राज्य का है, तुम्हारी निजी संपत्ति तो है नहीं। तुम मुझे वह दो जो तुम्हारा हो। राजा ने कहा कि महल ले लीजिए। साधु ने कहा कि महल भी तो प्रजा का है। तुम इसे कैसे दे सकते हो। राजा ने साधु से कहा कि आप ही बताएं कि आपको क्या चाहिए? साधु ने कहा कि तुम मुझे अपना अहंकार दे दो। यही एक चीज है जो तुम्हारी अपनी है। राजा समझ गया कि साधु उसे क्या समझाना चाहता है। उसी दिन से राजा ने अहंकार त्याग दिया।

-अशोक मिश्र

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