551 ईसा पूर्व में जन्मे कन्फ्यूशियस एक चीनी शिक्षक और दार्शनिक थे, जिनके सिद्धांत आज भी चीनी मान्यताओं और परंपराओं के साथ-साथ दुनिया भर के दर्शन पर लागू किए जा सकते हैं। चीन में आज भी कन्फ्यूशियस को बड़े आदर और सम्मान के साथ देखा जाता है। उनके विचारों पर शोध कार्य किए जाते हैं। एक बार की बात है। कन्फ्यूशियस ने अपने पुत्र को अपने समकालीन विचारक और संत चेन जिकिन के पास पढ़ने के लिए भेजा।
कहा तो यह भी जाता था कि दोनों लोग एक दूसरे का बहुत आदर सम्मान करते थे, लेकिन दोनों कभी बातचीत नहीं हुई थी। कन्फ्यूशियस और चेन जिकिन एक दूसरे पर किसी भी प्रकार की टिप्पणी भी नहीं करते थे। यानी न अच्छा कहते और न बुरा। जब कन्फ्यूशियस का पुत्र कांग ली पढ़ने के लिए चेन जिकिन के पास पहुंचा तो उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ। उन्होंने कांग ली से पूछा कि क्या तुम्हारे पिता ने तुम्हें कुछ ऐसा सिखाया है, जो मैं नहीं जानता। कन्फ्यूशियस के पुत्र ने जवाब दिया, नहीं। लेकिन एक बार मेरे पिता ने पूछा था कि तुम्हें काव्य पढ़ना पसंद है?
तब पिता जी ने कहा था कि मुझे कविता पढ़नी चाहिए। कविता आत्मा को प्रेरणा की ओर आगे बढ़ने में मददगार साबित होती है। एक बार उन्होेंने मुझसे पूछा कि देवताओं को अलंकृत करने की रीतियां जानते हो, तो मैंने मनाकर दिया। तब मेरे पिता ने कहा था कि मुझे देवताओं को अलंकृत करने की विधियां सीखनी चाहिए। लेकिन इसके लिए उन्होंने मेरी कोई निगरानी नहीं की कि मैं उनकी बात मानता हूं या नहीं। यह सुनकर चेन जिकिन आश्चर्यचकित रह गए। उन्होंने एक सवाल में तीन बातें सीख ली थीं जिसे वे नहीं जानते थे। कांग ली के व्यवहार से वह बहुत खुश हुए।
-अशोक मिश्र